बीमारी का पता चलना इलाज की शुरुआत है

प्रश्न: आचार्य जी, प्रणाम। विचारों का प्रवाह पहले से अधिक अनुभव होता है। कहाँ-कहाँ की सारहीन बातें मन को घेरे हैं। मन को निरंतर चलता देखकर खीज-सी उठती है, कि ये विचार क्यों और कहाँ से आ रहे हैं। पहले इतना शोर अनुभव नहीं होता था। अब मन यह देखकर इतना परेशान क्यों है?

आचार्य जी, कृपया इस पर प्रकाश डालें।

आचार्य प्रशांत जी: जब बीमारी का या गन्दगी का नया-नया पता चलता है, तो खीज तो उठती ही है न। अँधेरे कमरे में तो ये भी पता नहीं चलता कि सफ़ाई कितनी है और गन्दगी कितनी। जब प्रकाश पड़ेगा, तो संभावना यही है कि झटका लगेगा, खीज होगी, दुःख होगा। पहले शांत और आश्वस्त बैठे थे, अब पता चलेगा कि करने के लिए भी तो बहुत काम शेष है। कमरा बड़ा गन्दा है।

और यही बात बीमारी के उद्घाटित होने पर भी लागू होती है।

बीमारी जब तक छुपी है, तब तक चैन है। इधर -उधर थोड़ा दर्द हो रहा होगा। पर अभी तक ज्ञान नहीं हुआ कि तन में गहरी बीमारी आकर बैठ गई है। और जिस दिन बीमारी का पता चलता है, रिपोर्ट आती है, उस दिन तोते उड़ जाते हैं, जैसे की रिपोर्ट ने बीमार कर दिया हो। जैसे की रिपोर्ट अपने ऊपर बीमारी बैठाकर लाई हो।

लेकिन गन्दगी का ज्ञान होना, बीमारी का ज्ञान होना, शुभ है।

बुरा लगता है, लेकिन शुभ है।

और ये बात हम जानते हैं, इसीलिए पैसे ख़र्च करके, दाम चुका के उसके पास जाते हैं जो हमें बता सके कि हम बीमार हैं। वो आपको रिपोर्ट में लिखकर देता है कि आपको ये बीमारी है, ये बीमारी है, ये…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org