बिना प्रेम के क्या जी पाओगे?
--
धर्म ही एकमात्र समाधान है, खासकर आजकल की समस्याओं का। अध्यात्म के अलावा और कोई समाधान नहीं है विश्व के सामने जो आज़ बड़ी से बड़ी समस्याएँ खड़ी हैं उनका।
दुनिया के सामने जो सबसे बड़ी समस्याएँ खड़ी हैं वो हैं — उपभोग की।
चाहे बायोडाइवर्सिटी लॉस (जैव विविधता हानि), क्लाइमेट कैटॉस्ट्रफ़ी (जलवायु तबाही) हो, इनका मूल कारण क्या है? उपभोग।
वातावरण में जितनी भी ग्रीन हाउस गैसें आ रही हैं — मीथेन हो, कार्बन डाइऑक्साइड हो, कहाँ से आती हैं? अपनेआप ही आ जाती हैं? नहीं। ये हमारे उपभोग से आती हैं, खपत से आती हैं। तुम्हें कौन सिखाएगा कि भोग कम करो?
भोग से शांति नहीं मिलती, ये तुम्हें कौन सिखाएगा? विज्ञान? दूसरे से ईर्ष्या मत रखो, ये बात तुमको विज्ञान सिखाएगा, या गणित, रसायन शास्त्र, भौतिकी, ये सिखाएंगे? या ये बात तुमको संविधान सिखाएगा? ये बात तुमको धर्मशास्त्र ही सीखाएंगे न?
ऐसे भी लोग घूम रहे हैं जो कह रहे हैं कि देखो, दो चीजें चाहिए — तकनीकी प्रगति के लिए विज्ञान की किताबें और सामाजिक प्रगति के लिए संविधान।
‘प्रेम’ कौन सिखाएगा तुम्हें? संविधान के किस अनुच्छेद में ‘प्रेम’ सिखाया गया है, बताओ मुझे?
जो लोग कहते हैं कि “मेरी गीता मेरा क़ुरान सब कुछ है संविधान”, मैं पूछ रहा हूँ कि प्रेम कौन सीखाएगा? बताओ किस आर्टिकल में, किस डाइरेक्टिव प्रिंसिपल में, कहाँ लिखा हुआ है प्रेम? और कौन करुणा सिखाएगा? और एक बात ध्यान रखना, गर्भ से बच्चा न प्रेम लेकर पैदा होता है, न करुणा, ये सिखानी पड़ती हैं। इसलिए धर्म चाहिए।
खासतौर पर जो इंसानियतवादी लोग हैं, मानवतावादी लोग हैं, मैं उनसे कह रहा हूँ कि कुछ नहीं होती मानवता या इंसानियत।
इंसान को इंसान बनाता है धर्म। ये बात हम भूल गए हैं, हम बड़े कृतघ्न, अकृतज्ञ लोग हैं।
दो वैज्ञानिक भी एक दूसरे का गला न काटें, ये उन्हें कौन सिखाएगा, बताओ? सापेक्षता का सिद्धांत सिखाएगा? दो वैज्ञानिक ही एक दूसरे का गला ना काटें, ये सिखाएगा कौन? और उनके पास बहुत कारण हैं एक दूसरे का गला काट देने के — प्रतिस्पर्धा हो सकती है, ईर्ष्या हो सकती है, राष्ट्रीय सरोकार हो सकते हैं, जातीय सरोकार हो सकते हैं, धार्मिक प्रतिद्वंदिता हो सकती है, बहुत कारण हो सकते हैं, व्यवसायिक दौड़ हो सकती है; कौन आगे निकलेगा, इस प्रयोगशाला का प्रमुख कौन बनेगा, क्यों न एक-दूसरे का वो गला काट दें?
मैं बहुत-बहुत कद्र करता हूँ विज्ञान की और जो लोग विज्ञान का अपमान करते हैं वो मुझसे बहुत खरी-खोटी सुनते हैं, लेकिन मैं फ़िर भी पूछ रहा हूँ, किसने पढ़ाया “न्यूटन का करुणा का नियम”?
ग्रहों की गति के केपलर नियम तो आपने पढ़े हैं, करुणा का नियम भी पढ़ा है क्या? तुम खारिज कर दो वेदांत को, उपनिषदों को, गीता को, संतों की वाणी को, बाइबल को, क़ुरान को, तुम बिल्कुल उठाकर कचरे में डाल दो, अब मुझे बता तो दो कि तुम्हें करुणा कौन सिखाएगा, और बिना करुणा के जियोगे कैसे?
बिना प्रेम के क्या जी पाओगे?
पूरा वीडियो यहाँ देखें।
आचार्य प्रशांत के विषय में जानने, और संस्था से लाभान्वित होने हेतु आपका स्वागत है।