बिखरे मन के लिए संसार में टुकड़े ही टुकड़े हैं

स्वाति बूंद केतली में आए, पारस पाये कपूर कहाए।

दर्पण फूटा कोटि पचासा, दर्शन एक सब में बासा।।

~ संत दादू दयाल

आचार्य प्रशांत: आप एक स्थान पर खड़े हैं और आपके चारों तरफ असंख्य शीशे हैं — ऊपर, नीचे, दसों दिशाओं में शीशे हैं; हर रंग, हर आकार और हर प्रकार का शीशा है। मुड़े हुए शीशे, छोटे शीशे, बड़े शीशे और जितने प्रकार हो सकते हैं। आपको चारों तरफ क्या दिखाई देगा?

चारों तरफ अलग-अलग वस्तुएँ, व्यक्ति और आकार दिखाई देंगे। भेद दिखाई देगा — इसी भेद का नाम संसार है।

संसार कुछ नहीं है बल्कि आपका ही प्रतिबिम्ब है। जब मन खंडित होता है, जब मन टूटे हुए शीशे की भांति होता है — ‘दर्पण फूटा कोटि पचासा’ — ये मन का दर्पण है, जब ये खंडित दर्पण है तो इसमें संसार भेद युक्त दिखाई देता है, सब अलग-अलग है। तब अपने बेटे और पड़ोसी के बेटे में अन्तर है, स्त्री और पुरुष में अन्तर है, मनुष्य में और पशु में अन्तर है, पदार्थ में और जीव में अन्तर है।

हर तरफ अन्तर ही अन्तर है। काले-सफ़ेद का अन्तर है, सुख-दुःख का अन्तर है। मात्र अन्तर है — भेद। क्योंकि — दर्पण फूटा कोटि पचासा, दर्पण टूटा हुआ है, खंडित है। इसी को कहा जाता है मन का बंटा होना, कि उसमें सब अलग-अलग दिखाई देता है। और जो अलग-अलग दिखाई दे रहा है वो वास्तव में क्या है? एक है; न सिर्फ एक है, बल्कि आप हैं। याद रखिएगा कि, “आत्मा एक है” — इसमें दो बातें हैं:

  • पहली बात — एक है

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org