बाहरी प्रेरणा साथ नहीं देती

आचार्य प्रशांत: रवि का सवाल है कि आज तक तो मैंने ज़िन्दगी में यही देखा है कि मेरी सारी प्रेरणा (मोटीवेशन) बाहर से ही आई है। कोई बाहरी व्यक्ति आता है, मुझे कुछ बोलता है और उससे मैं उत्साह से भर जाता हूँ। और मैंने यही देखा है कि ऐसा ही होता है। और रवि का कहना है कि ऐसा हो कैसे सकता है कि बाहरी प्रभाव के बिना ऊर्जा का स्त्रोत मेरे भीतर ही हो।

रवि, बाहरी प्रभाव ने आकर तुम्हें उत्साहित किया और फिर क्या हुआ उस उत्साह का?

बाहरी आता है, एक माहौल बनाता है, तुम्हारे मन को बिलकुल आंदोलित कर देता है। उसके रहते मन आंदोलित होता है पर क्या ऐसा उत्साह सदा रह सकता है? प्रभाव जाएगा और उसके साथ तुम्हारा उत्साह भी चला जाता है।

और क्या जीवन हमने ऐसे ही नहीं बिताया है? कुछ बाहरी परिस्तिथियाँ बदलती हैं और हमें लगता है — वाह! अब हम कुछ कर जायेंगे। नया साल आता है — एक बाहरी घटना- और तुम एक संकल्प लेते हो कि कुछ कर जायेंगे पर नया साल रोज़ तो नहीं रहेगा। दस ही दिन में तुम पाते हो कि गुब्बारे में से हवा निकल चुकी है। कोई आता है तुम्हे बहुत क्रांतिकारी बात बोल कर चला जाता है और वो बात तुम्हारे साथ दो दिन-चार दिन रहती है और फिर गायब हो जाती है क्योंकि उस बात का तुमसे कोई गहरा सम्बन्ध नहीं है। बाहर से कोई चीज़ थोप दी गयी है तुम पर; कितने दिन चलेगी?

और फिर जिसने तुमसे बाहर से एक तरफ जाने को कहा, वो तुम्हें दूसरे दिन किसी और तरफ़ भी जाने को कह सकता है। या एक ताक़त हो सकती है जो तुम्हें एक तरफ़ को खीचे। और दूसरी ताकत आये और कहे कि नहीं, दूसरी तरफ़ को…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org