बाहरी प्रभावों से कैसे बचा जाए?
बाहर तो ये नकली चेहरा लटका होता है शांति का, क्योंकि बाहर से व्याकुलता दिखाओगे तो कोई कहेगा, “ये पागल आदमी है।” क्लास में बैठे हो और बाहर से भी उत्तेजित हो, तो शिक्षक क्लास से बाहर निकाल देगा। दोस्तों के साथ हो और बाहर से भी दिखा रहे हो कि — मैं बहुत उदास और व्याकुल हूँ — तो दोस्त भी पास नहीं आएँगे। वो कहेंगे, “ये कैसा बंदा है, इसके पास मत जाओ।” है ना?
थोड़ा उल्टा चलो।
बाहर-बाहर उदासीनता में रह लो, ख़ुशी में रह लो, व्याकुलता में रह लो, उत्तेजना में रह लो, भीतर से बिलकुल शांत रहो।
भीतर से बिलकुल शांत रहो।
जो सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी हैं, उनमें एक बात नोटिस करी होगी कि वो बाहर जैसे भी बोलें, भीतर से उत्तेजित नहीं होते।
रॉजर फेडरर को कभी अपशब्द कहते सुना है? इतने सारे छोटे-छोटे खिलाड़ी होते हैं, जो पहले दूसरे राउंड में बाहर हो जाते हैं। वो गालियाँ भी देते हैं, क़समें भी खाते हैं। तेंदुलकर को कभी देखा है इशारा करते हुए, कि छक्का मारने के बाद बोल रहा है, “देख मैंने मारा?” देखा है कभी? हाँ, जो आम बल्लेबाज़ होते हैं, वो ज़रूर करते हैं ये सब।
राहुल द्रविड़ को कभी देखा है उत्तेजित, कि किसी के पास दौड़ के जा रहा है कि ये कर दूँगा, वो कर दूँगा? हाँ जो आम खिलाड़ी हैं, वो ये कर लेते हैं। समझ रहे हो?
बाहर से उत्तेजित।
और भीतर से? शांत!
बाहर से दिखा लो जो दिखाना है, अंदर शांति।
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