Sitemap

Member-only story

बाहरी घटनाएँ अन्दर तक हिला जाती हैं?

बाहर मंदी आ रही है, कर्ज़ा ले लिया है, उसकी वजह से तनाव होता है। इन बाहरी परिस्थितियों में भी उल्लास कैसे बचा रहे? आनंदित कैसे रहें?

बाहर जो कुछ भी हो रहा है, इतना बड़ा कैसे हो गया? एक मूल बात, सिद्धान्त, समझिएगा मेरे साथ-साथ। बाहर जो कुछ भी है वो किसी बाहरी चीज़ पर ही प्रभाव डाल सकता है न? दूसरे शब्दों में हर चीज़ अपने ही तल की किसी चीज़ से प्रतिक्रिया कर सकती है न? जो जहाँ का है वो वहीं के अन्य पदार्थों, अन्य इकाइयों पर अपना प्रभाव छोड़ सकता है न? पत्थर उछलेगा तो पेड़ पर लगेगा क्योंकि पत्थर और पेड़ दोनों ही ज़मीन के हैं। तो वो एक दूसरे से क्रिया-प्रतिक्रिया कर सकते हैं, एक दूसरे से सम्बंध रख सकते हैं।

अब बाहरी और आंतरिक में अंतर समझिएगा। आप जिसको आंतरिक बोलते हैं अगर वो बाहरी परिस्थितियों से प्रभावित हो जाता है तो या तो आंतरिक बाहरी है या बाहरी आन्तरिक है, पर एक बात पक्की है कि दोनों एक हैं। क्योंकि बाहर की चीज़ बाहर की ही चीज़ पर प्रभाव डाल सकती है। और अंदर की चीज़ का सम्बंध अंदरूनी चीज़ों से ही हो सकता है। आप कहें, “घटना बाहर घटी है, हिल गया कुछ भीतर-भीतर”, तो इसका मतलब है जो भीतर-भीतर लग रहा है, वो भी है ‘बाहर’।

अब आप कह रहे हैं कि बाहर घटना घट रही है, मंदी छा रही है, कर्ज़ा इत्यादि है और वो आपके आनंद को हिलाए-डुलाए दे रहा है। तो फिर ये आनंद भी कैसा है? ये तो बाहरी हो गया न? आनंद तो आत्मा है। कैसे जीएँगे आप आत्मा को बाहरी बनाकर? जैसे कोई आदमी अपना दिल अपने हाथ में लेकर चलता हो बाहर-बाहर। हो सकता है वो तो फिर भी जी जाए कुछ दिन, कुछ हफ़्ते…

--

--

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant
आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

Written by आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

No responses yet