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बाहरी घटनाएँ अन्दर तक हिला जाती हैं?

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, समय बदल रहा है, और जिस क्षेत्र में मैं कार्यरत हूँ उस क्षेत्र में धीरे-धीरे मंदी आ रही है। मैं इस मंदी से आंतरिक रूप से बहुत ज़्यादा प्रभावित हुआ हूँ। कारणवश अब आर्थिक रूप से भी मैं बिल्कुल खाली हो गया हूँ, और इस प्रक्रिया में मैंने ख़ुद पर बहुत कर्ज़ा भी उठा लिया है।

आपसे यह समझना चाहता हूँ कि जब बाहरी सारी परिस्थितियाँ प्रतिकूल हों तब भी मैं कैसे साहस रखूँ, उमंगित रहूँ, और अपने कर्मों को बिना द्वंद के प्रतिदिन कैसे करता चलूँ?

आचार्य प्रशांत: बाहर मंदी आ रही है, कर्ज़ा ले लिया है, उसकी वजह से तनाव होता है। इन बाहरी परिस्थितियों में भी उल्लास कैसे बचा रहे? आनंदित कैसे रहें?

बाहर जो कुछ भी हो रहा है, इतना बड़ा कैसे हो गया? एक मूल बात, सिद्धान्त, समझिएगा मेरे साथ-साथ। बाहर जो कुछ भी है वो किसी बाहरी चीज़ पर ही प्रभाव डाल सकता है न? दूसरे शब्दों में —हर चीज़ अपने ही तल की किसी चीज़ से प्रतिक्रिया कर सकती है। जो जहाँ का है वो वहीं के अन्य पदार्थों, अन्य इकाइयों पर अपना प्रभाव छोड़ सकता है न? बोलो? है न? पत्थर उछलेगा तो पेड़ पर लगेगा, क्योंकि पत्थर और पेड़ दोनों ही ज़मीन के हैं। तो वो एक दूसरे से क्रिया-प्रतिक्रिया कर सकते हैं, एक दूसरे से संबंध रख सकते हैं। है न?

अब बाहरी और आंतरिक में अंतर समझिएगा।

आप जिसको 'आंतरिक' बोलते हैं अगर वो बाहरी परिस्थितियों से प्रभावित हो जाता है, तो या तो आंतरिक बाहरी है, या बाहरी आंतरिक है; पर एक बात पक्की है कि दोनों एक हैं। क्योंकि बाहर की…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant
आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

Written by आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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