बहता पानी निर्मला

बहता पानी निर्मला, बंधा गंदा होये | साधु जन रमता भला, दाग न लागे कोये ||

वक्ता: बहने से क्या तात्पर्य है? रुकने से क्या तात्पर्य है?

जिसे हम जीवन कहते हैं वही बहना है, वही बहाव है, वही प्रवाह है| लगातार कुछ हो रहा है, लगातार गति है| समय बह रहा है, एक धारा है जो अभी है, वो तत्क्षण नहीं है, यही बहना है| बहने का अर्थ ही है- न होना| बहने का अर्थ है- जब तक आप कहें की है, तब तक ही उसका होना असत् हो जाए, अब वो नहीं है| बहने का अर्थ ही यही है कि उसकी अपनी कोई सत्ता, कोई नित्यता नहीं है, बस प्रतीत हो रहा है|

ठहरना क्या है? जो कुछ भी बह सकता है, जो कुछ भी समय में है, उसको सत्य जानकर महत्व दे देना, उसको अपने होने का हिस्सा बना लेना, ये ठहरना है| जो बहा ही जा रहा था, रुकना जिसकी प्रकृति नहीं है, उसको रोकने की चेष्टा करना, ‘जो था ही नहीं मैंने उसको अस्तित्व दे दिया’|

‘बहता पानी निर्मला…’, और तुम, तुम हो, बहाव के साक्षी, तब सब ठीक है| पानी की प्रकृति है बहना, तुम्हारा स्वाभाव है होना, कायम रहना| पानी की प्रकृति है चलायमान रहना, तुम्हारा स्वभाव है अचल रहना| जब तक पानी, पानी है, तुम, तुम हो, तब तक सब ठीक, तब तक कोई बात ही नहीं, सब कुछ ठीक है| सब कुछ वही है जहाँ उसे होना है, और वैसा ही है जैसा उसे होना है| पर, गड़बड़ हो जाती है, मिश्रण हो जाता है, मिलावट हो जाती है|(ज़ोर देते हुए) दाग़ लग जाता है|

जो है ही नहीं, हम उसे पकड़ कर अपने होने का हिस्सा बना लेते हैं, इसी को कहते हैं- दाग लगा लेना| ये जो गतिशील संसार है, ये जो मन का पूरा…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org