बस राम को चुन लो, आगे काम राम का

तुलसी ममता राम सों सकता सब संसार।

राग न द्वेष न दोष दु:ख दास भए भव पार।।

~ संत तुलसीदास

आचार्य प्रशांत: राम से ममता, संसार में समता।

संसार में कुछ ऐसा नहीं जो कुछ दे सकता है, और कुछ ऐसा नहीं जो कुछ ले सकता है, तो यहाँ तो सब एक बराबर — समता। यहाँ तो कोई हमारे सामने विकल्प रखे ही नहीं, क्योंकि संसार को लेकर हम निर्विकल्प हैं। हमने एक विकल्प चुन लिया है, वो राम है। हमने तो चुन लिया, अब यहाँ पर तुम क्या विकल्प दिखा रहे हो? जैसे कोई बच्चा अपनी माँ के साथ किसी रेस्तराँ में खाना खाने जाए या आप अपने किसी स्वजन के साथ, किसी प्रेमी के साथ खाना खाने जाएँ।

आप विदेश में हैं। जो भोजन की सूची है, जो मेनू कार्ड है, वो किसी विदेशी भाषा में है। कार्ड की एक प्रति आपके सामने रख दी गयी है, एक आपके प्रेमी के सामने रख दी गयी है। आप क्या करेंगे? आप ख़ुद चुनेंगे? आप एक चुनाव करेंगे, वो चुनाव होगा कि — “मैंने चुन लिया कि तुम चुनोगे।” और यदि ख़ुद चुनने बैठ गए तो? तो वही होगा जो होता है हमेशा। जीवन भर जो चुनाव करे हैं, उनका जैसा स्वाद मिला है, वैसा ही स्वाद फिर मिल जाएगा उस रेस्तराँ में भी।

भक्ति ही बुद्धिमानी है। भक्ति निर्बुद्धी होने का नाम नहीं है, ये परम बुद्धिमानी की बात है कि — मैं तुझको चुनने दूँ। तू माँ है, तू प्रेमी है, तू चुन दे। मेरा काम तू कर दे। ऐसा नहीं कि मैंने चुना नहीं, ऐसा नहीं कि मैं मूढ़ हूँ। मैंने चुना। मैंने क्या चुना? मैंने तुझे चुना। मैंने तुझे चुना, आगे के चुनाव तू…

--

--

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org