बस बेहोश बहाव
आचार्य प्रशांत: तुम नाव के पास जाते हो तो पाते हो कि नाव का जो नाविक है, वो सो रहा है। तो नाव अब पूरी तरह से लहरों के हवाले है। जो भी बड़ी लहर आएगी उस पर बाहर से प्रभाव डालेगी और अपने साथ ले जाएगी, फिर दूसरी लहर आएगी उसे कहीं और ले जाएगी। तुम्हारी आदत यह डाल दी गई है कि तुम बाहरी प्रभावों से चलते हो। अगर बाहर से प्रेरणा मिली तो तुम कुछ कर दोगे और जो भी प्रेरणा मिली तुम वही कर दोगे। चाहे कितना ही कठिन क्यों न हो तुम कर डालोगे क्योंकि आन्तरिक तो कुछ है नहीं। यहाँ खली बैठा है। बाहर से जो भी लहर आएगी तुम्हें ले चलेगी अपने साथ।जाग जाओ! फिर तुम्हे बाहरी प्रभावों कि ज़रूरत नहीं पड़ेगी। फिर तुम खुद जानोगे कि तुम्हें अपनी नाव किस दिशा में ले जानी है। एक बार नाविक उठ गया तो अब तो लहरें नहीं कर सकती ना कोई गड़बड़। उसके पास पाल भी है, पतवार भी, अब अपने हिसाब से चलाएगा। सोते रहोगे तो कहोगे कि लहरें प्रेरित नहीं कर रही हैं। या यह कहोगे कि कोई लहर आई उसने बड़ा प्रेरित किया, नाव कुछ दूर तक गई अब यह लहर नहीं प्रेरित कर रही है तो मैं क्या करूँ? तुम बैठे रहो निर्भर बनकर कि कोई प्रेरित करेगा तो कुछ करेंगे, अगर कोई नहीं करेगा तो कुछ नहीं करेंगे।
तो क्या करना चाहिए? समझ लाओ और देखो कि क्या करना चाहिए। यह तुम्हारे साथ बड़ी अच्छी स्थिति है कि तुम जान पा रहे हो कि तुम्हारे पास दुविधा है। ‘शायद जो कर रहा हूँ वो उचित नहीं है,’ इतना तो जान पा रहे हो ना? तुम अगर पूरी तरह से जान जाओ कि जो कर रहा हूँ वो पूरी तरह से ठीक नहीं है तो तुम उसे करोगे कहाँ? तुम इस बात को ध्यान से देखो ना तुम नहीं जान रहे हो, और नहीं जानने का कारण यह नहीं है कि तुम्हें जानकारी…