बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर

बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर। ।

~गुरु कबीर

प्रश्न: आचार्य जी, प्रणाम। कृपया गुरु कबीर की इन पंक्तियों का आशय स्पष्ट करें।

आचार्य प्रशांत जी:

एक ही है जो बड़ा है, जो वृहद है, उसे ‘ब्रह्म’ कहते हैं। उसके अलावा कुछ और बड़ा नहीं। उसके अलावा तो आप जिसको भी ‘बड़ा’ कहेंगे, बस तुलनात्मक रूप से कहेंगे। और किसी बड़े से बड़े की ‘उससे’ तुलना कर देंगे तो छोटा हो जाएगा।

तो वास्तव में अतुलनीय रूप से यदि कोई बड़ा है, तो मात्र ‘ब्रह्म’ है। वो बड़ा ही नहीं है, उसका बड़ा होना निरंतर बढ़ता ही रहता है। वो वृहद से वृहद होता रहता है।

बड़े होने का स्वभाव बिलकुल यही है — अनन्त्त से अनन्त्तर होते जाना।

बढ़ते जाना, बढ़ते जाना।

वो कम नहीं हो सकता। वो जितना विस्तृत होता है, जितना फैलता है, उतना बढ़ता है। दूसरे शब्दों में कहें, वो जितना बँटता है, जितना देता है, उतना ज़्यादा बढ़ता है। इसी ओर कबीर साहिब इशारा कर रहे हैं, इसे कुछ और न समझा जाए ।

जब आपके भीतर सत्य प्रकाशित होता है, तो वो बँटेगा ज़रूर।

पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर।

वो बँटेगा ज़रूर। उससे, जो बाकी पथिक हैं, जो अपनी-अपनी व्यक्तिगत यात्राओं पर हैं, उन्हें भी मदद मिलेगी, और आपका बढ़ना भी निरंतर जारी रहेगा।

--

--

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org