बच्चों को जीवन की शिक्षा कैसे दें?
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प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, बच्चों को कैसे समझाया जाए जीवन के विषयों पर?
आचार्य प्रशांत: आप उनके प्रति सद्भाव से भरी रहिए, आप उनके प्रति शुभेच्छा से भरी रहिए और अपना परिष्कार करती चलिए।
प्र: परिष्कार मानें?
आचार्य: अपनी सफ़ाई करती चलिए। आपके भीतर लगातार ये भाव रहे कि उनको जो ऊँचे-से-ऊँचा है वो देना है। आपकी ये भावना ही आपमें ये काबिलियत पैदा कर देगी कि आप उन्हें कुछ दे पाएँ।
प्र: आपका बहुत सारा वीडियो देख-देख कर और पुस्तकें पढ़-पढ़ कर यह स्पष्ट हो गया है कि सब अंदर से एक ही हैं। मेरे बेटे में भी वही (परमात्मा) है और मेरे पति में भी और किसी दुश्मन में भी। तो मुझे लगता है कि यदि मैं स्वयं को कुछ कहती हूँ तो वह सभी तक पहुँचेगा। तो क्या ऐसा होता है?
आचार्य: आप सब ने स्वार्थ की ताक़त तो देखी है न दुनिया में? कि आदमी अपने स्वार्थ के लिए क्या-क्या कर लेता है। अब एक बात समझिए —
परमार्थ की ताक़त स्वार्थ की ताक़त से ज़्यादा बड़ी है। आपको सुनकर थोड़ी हैरत होगी, लेकिन दूसरे के लिए आप जितना कर सकते हो उतना आप अपने लिए कभी नहीं कर सकते। अगर अपने लिए करने निकलोगे तो तुम्हारी ऊर्जा ख़त्म हो जाएगी, थोड़ा बहुत करोगे और फिर कहोगे "बहुत हुआ!" लेकिन वास्तव में अगर परमार्थ करने निकले हो तो तुम्हारी ऊर्जा अनंत हो जाएगी, क्योंकि अब तुम्हें ऊर्जा ऊपर से मिलेगी। जब तुम स्वार्थवश अपने लिए कुछ करने चलते हो तो तुम्हें बस कुल तुम्हारी ऊर्जा ही उपलब्ध होती है, लेकिन जब तुम दूसरों के लिए करने निकलते हो तो दाता फिर ऊर्जा देता है तुमको, अब तुमको बहुत ऊर्जा मिल जाती है।
तो बहुत कुछ करना चाहते हो तो अपने लिए मत करना, थोड़ा-सा कुछ करना चाहते हो तो अपने लिए कर लो। बहुत करना है तो दूसरे के लिए करो फिर देखो कि तुम ख़ुद हैरत में आ जाओगे, कि "अरे हम इतना कर पाए!" वो तुम कर ही इसीलिए पाए क्योंकि दूसरों के लिए कर रहे थे। परमार्थवश जितना कर लोगे स्वार्थवश उतना कभी नहीं कर पाओगे। तो बच्चों को अगर समझाना है, देना है, तो बस कहिए कि, "उनको देने के लिए मुझे इस क़ाबिल बनना है कि दे पाऊँ।"
अध्यात्म में जो गहराई आपको निजी मुक्ति की कामना से नहीं मिलती वो गहराई आपको मिल जाएगी अगर आप कहेंगी कि, "मुझे दस और लोगों को मुक्ति देनी है।" एक साधक होता है जो कहता है, "मुझे चाहिए मुक्ति", उसको मुश्किल से मिलती है। एक साधक होता है जो कहता है, "मुझे चाहिए मुक्ति" उसको मिलती है?
प्र: मुश्किल से।
आचार्य: मुश्किल से। और एक प्रेमी होता है जो कहता है, "मुझे मिले-न-मिले, दाता इनको सबको मिले।" उसको सबसे पहले मिल जाती…