बच्चों की असफलता और बेरोज़गारी से घर में तनाव

जिसको हम सामान्य भाषा बोलते हैं, वो बड़ी ज़हरीली है। जिस चीज़ को हम कहते हैं ‘अच्छी ज़िंदगी’, जिसको हम कहते हैं ‘आगे बढ़ना’, जिसको हम कहते हैं ‘लाइफ में सेटल हो जाना’ — वो सब बड़ी ज़हरीली धारणाएँ हैं। लेकिन ये हमारी ज़बान पर चढ़े हुए हैं तो हम इनका खटाखट इस्तेमाल करते रहते हैं। किसी के घर गाड़ी आ जाए, आप तत्काल उसको बधाई देंगे, “अच्छा जी! बढिया है। खुशी की बात है।” ये ख़ुशियों की बातें, ये सब शुभ समाचार और गुड-न्यूज़ — हमारी ज़िंदगी में और कहाँ से आता है ज़हर? इन्हीं से तो आता है। हमें और किसने बर्बाद किया? इन्हीं शुभ समाचारों, गुड-न्यूज़ ने ही तो बर्बाद किया है। और अपने-आप को ही परेशान मत कर लीजिए ये बोल-बोल कर कि, “बगल के घर में शुभ घटना घटी, वो लड़का सेलेक्ट हो गया। और हमारे घर में शुभ घटना नहीं घटी रही है, लड़का सेलेक्ट नहीं हो रहा है।” नहीं नहीं, ये सब मत करिए।

जीवन के लिए रोटी ज़रूर चाहिए लेकिन रोटी अब इतनी भी विरल और कठिन चीज़ नहीं रही है कि आदमी रोटी की लड़ाई लड़े। रोटी मिल जाती है। रोटी के अलावा भी बहुत कुछ चाहिए और उस क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा नहीं है। मज़ेदार बात ये है कि जिस चीज़ का जीवन में ज़रा कम ही महत्व है, कम से कम आज के समय में उसके लिए बड़ी प्रतिस्पर्धा है। रोटी के लिए मार-काट मची हुई है और जिस चीज़ का रोटी से थोड़ा ज़्यादा ही महत्व है वो चीज़ बड़ी आसानी से उपलब्ध है, एकदम सुलभ है, क्यों? क्योंकि वो चीज़ कोई पाना ही नहीं चाहता और वो चीज़ इतनी बड़ी है कि अगर उसको लाखों लोग पाना चाहें तो लाखों को मिल जाएगी।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org