बच्चे के लिए घातक मोह

प्रश्नकर्ता: मैं जबसे मदर (माँ) बनी हूँ तबसे मैं ये अनुभव कर रही हूँ कि ममता और मोह जो है वो बहुत बढ़ रहा है और डर भी बढ़ रहा है साथ में। चिंताएँ लगी रहती हैं और जब बच्चे के साथ खेलती हूँ तो बहुत एक सुख की अनुभूति भी होती है। तो डर भी एक इस चीज़ का ये लगने लगा है कि कहीं हम एक दूसरे पर डिपेंड (निर्भर) ना हो जाएँ आगे चलकर। तो कृपया उसके लिए मार्गदर्शन करिए।

आचार्य प्रशांत: अब बात तो आप समझ रही ही हैं। कुछ चीज़ें साफ़ दिखाई देने लग गई होंगी। कुछ चीज़ें धीरे-धीरे साफ़ दिखाई देंगी। अपनी बेटी की ओर एक बार को ऐसे देखिए जैसे आपकी बेटी नहीं है, किसी और की है और अपनी बेटी की माँ को ऐसे देखिए जैसे वो आप ना हों।

बेटी को ऐसे देखिए जैसे आपकी बेटी ना हो और बेटी की जो माँ है उसको ऐसे देखिए जैसे वो कोई और हो, आप ना हों और फिर देखिए कि माँ बेटी के साथ क्या कर रही है और फिर बताइए क्या चल रहा है।

यही किस्सा किसी और के घर में चल रहा होता तो आप क्या कहतीं? जो सीख, जो सलाह आप उस दूसरी स्त्री को देतीं वही सलाह आपने-आपको दीजिए। दूसरी स्त्री को शायद आप तत्काल बता देतीं, "इतना मोह ठीक नहीं है, तुम बच्चे को ही ख़राब कर दोगे।"

प्र: तो फिर इस पर कैसे काबू करूँ?

आचार्य: वो इसी प्रक्रिया से गुज़रकर सब ठीक हो जाएगा। अभी तो आपको दिखाई भी नहीं दे रहा होगा कि चूक कहाँ पर हो रही है। मोह-ममता आँखों पर पर्दा डाल देते हैं।

प्र: मैं इसे ऐसे उचित ठहराती हूँ कि अभी वो छोटी है तो सबकुछ मुझे ही करना है।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org