बच्चा पैदा करने के बाद अपराध भाव

प्रश्नकर्ता: मेरे दो बच्चे हैं — आठ वर्ष और दो वर्ष के। जबसे आपको सुनने लगा हूँ, धीरे-धीरे समझ में आने लगा है कि मुझे दूसरा बच्चा नहीं करना चाहिए था। शायद पहला बच्चा भी करने की कोई ज़रूरत नहीं थी। अब मुझे जलवायु-परिवर्तन के कारण दुनिया के भविष्य की और इन बच्चों के भविष्य की भी बड़ी चिंता होती है। ऐसा एहसास होता है जैसे मैं कोई पाप ही कर बैठा हूँ। मदद करें।

आचार्य प्रशांत: देखिए, दो बातें समझनी होंगी। मैं बार-बार कहा करता हूँ कि अब पृथ्वी के पास गुंजाइश बची नहीं है कि वो एक भी अतिरिक्त आदमी का बोझ सहर्ष स्वीकार कर सके। पृथ्वी पर मानवों की आबादी करीब आठ-सौ करोड़ हो रही है। ये आठ-सौ करोड़ ही जितने हो सकते हैं उससे बहुत ज़्यादा हैं। संख्या का, सीमा का कब का उल्लंघन हो चुका है। तो और ज़्यादा जीव, और ज़्यादा मनुष्य इस दुनिया में आएँ ये बात कहीं से भी बोध की नहीं है। और ये बात बहुत ज़्यादा क्रूरता की है जब आप अन्य प्रजातियों का, दूसरे जीवों का ख़्याल करते हैं।

तो एक ओर तो मैं साफ़-साफ़ कहा करता हूँ कि बच्चे पैदा करने की कोई ज़रूरत नहीं है। अगर पति-पत्नी को बहुत ही भावना उठती है कि घर में बच्चा होना चाहिए तो अधिक-से-अधिक एक बच्चा आप करलें, दूसरा तो कतई ना करें। ये काल ऐसा है, ये समय ऐसा है कि इस समय में आबादी बढ़ाना पाप-तुल्य ही है। तो एक बात तो ये है जो मैं कहता हूँ।

और एक दूसरी बात भी है। दूसरी बात ये है कि एक बार अगर कोई जीव पैदा हो गया तो अब उसे जीवन का पूरा अधिकार है और वो आपके प्रेम का, आपकी करुणा का पूरी तरह से पात्र है। वो नहीं पैदा हुआ होता, कोई बात नहीं होती। शायद भला ही होता कि वो ना पैदा हुआ होता। पर अगर वो पैदा हो गया है तो अब उसको पाप समझना ठीक नहीं है। अगर वो पैदा हो गया है तो उसको आप अच्छी-से-अच्छी…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org