बच्चा कौन? बूढ़ा कौन? ब्रह्मचर्य क्या?
प्रश्न: आचार्य जी, नचिकेता बिलकुल निडर होकर ब्रह्म के पास चले जाते हैं और कबीर जी के ‘आई गँवनवा की सारी’ के भजन का पात्र रो-रोकर जाता है। तो क्या ऐसा होता है कि बाल्यपन में आसान होता है, और समय बीतने पर स्वयं जाना मुश्किल है, या फ़िर घसीटना पड़ता है?
आचार्य प्रशांत: देवेश (प्रश्नकर्ता) कह रहे हैं कि, “नचिकेता एकदम निडर होकर यम के पास चला जाता है और कबीर के ‘गँवनवा की सारी’ भजन का पात्र रो-रोकर जाता है। तो क्या ऐसा है कि बालपन में आसान होता है और समय बीतने पर स्वयं जाना मुश्किल है, या फ़िर घसीटना पड़ता है?”
हाँ ठीक कहा आपने, बालपन में आसान होता है सच्चाई की तरफ़ जाना, और जैसे-जैसे समय बीतता जाता है, परतें चढ़ती जाती हैं, ज़रा कठिन होता जाता है। लेकिन बालपन का आध्यात्मिक अर्थों में आशय दैहिक उम्र से नहीं है, ये संयोग ही है कि नचिकेता शरीर से भी बालक हैं और मन से भी। आसान उनके लिए नहीं जो शरीर से बालक हैं, आसान उनके लिए है जो मन से बालक हैं।
मन से बालक होने का अर्थ क्या है? बच्चा बच्चा तब कहलाता है जब माँ से बहुत दूर ना गया हो। जब तक उसकी माँ से बहुत दूरी बनी नहीं, तब तक वो बालक है। और जैसे-जैसे माँ से, गर्भ से, अपने उद्गम स्रोत से, अपने होने से पहले की सच्चाई से उसकी दूरी बढ़ती जाती है वो फ़िर वयस्क कहलाता है। वो जवान होगा, प्रौढ़ होगा, बूढ़ा होगा।
माँ कौन है समझ लेंगे तो समझ जाएँगे बच्चा किसको कह रहे हैं। माँ बच्चे की वो सच्चाई है जो उसके होने से पहले की है। बच्चा अचानक ही तो कहीं से नहीं आ जाता, वो…