बचपन से ही पीते हो प्रभावों की घुट्टी

प्रश्न: आचार्य जी, ये घटना मेरे साथ घट चुकी है, वो बता रहा हूँ। एक बार मैं अपने घर, लखनऊ जा रहा था। तो एक माँ और उनके साथ एक बहुत छोटा बच्चा बैठा था। मैं उनके पास ही बैठा था। रास्ते में एक पेड़ पड़ा, उस पर कुछ बंदर बैठे हुए थे। तो उन्होंने बहुत प्यार से बोला, देखो वो बन्दर बैठा है पेड़ पर। तो मैंने सोचा, इतना छोटा बच्चा है, अभी से क्या मतलब सिखा रही हैं!

कुछ देर बाद, उन्होंने बच्चे को ‘बद्तमीज़ कहीं के’ बोला और एक थप्पड़ लगाया।

तो मैं ये पूछना चाहता हूँ, कि माता-पिता बचपन से ही बच्चों को क्यों घुट्टी पिलाना चाहते हैं?

आचार्य प्रशांत: राहुल का सवाल वही है, कि ये समाज आखिर ऐसा है क्यों? पर उसको और बारीक़ी से देखेंगे।

पहली बात राहुल ने कही, कि अभिवावक ऐसे क्यों हैं?

देखिए, तो बात इससे शुरू करते हैं, कि ‘अज्ञान पर किसी का हक़ नहीं है’। ‘नासमझी’ किसी की बपौती नहीं हैं। कोई भी नासमझ हो सकता है। जहाँ तक परवरिश की बात है, पालन-पोषण की बात है, तो वो एक पूर्णतः जैविक प्रक्रिया है। या ये कहना चाहिए कि ‘प्रजनन’ एक पूर्णतः जैविक प्रक्रिया है। हर जानवर बच्चा पैदा कर लेता है। कोई जानवर, कोई प्रजाति, ऐसी नहीं होती जो ना जानती हो, कि बच्चे कैसे पैदा किए जाते हैं।

बच्चे पैदा कर लेने भर से कोई विशेष योग्यता तो नहीं आ जाती है। ना माँ में, ना बाप में! अगर माँ-बाप, दोनों के मन में अंधेरा ही अंधेरा है, तो वही अंधेरा वो बच्चे को दे देते हैं।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org