बचपन का प्यार मेरा भूल नहीं जाना रे

प्रश्नकर्ता: मेरी उम्र अड़तीस वर्ष है और मेरे दो बच्चे हैं और उनके लिए मैं अच्छी माँ बनने की भरपूर कोशिश करती हूँ। परसों मेरे बच्चों ने टीवी पर देखा कि एक मुख्यमंत्री साहब एक बच्चे को सम्मानित कर रहे थे जिसने गाना गाया हुआ है "बचपन का प्यार मेरा भूल नहीं जाना रे!" तो उसके बाद से मेरा छोटा बेटा, जो छः साल का है, वो वही गाना गाये जा रहा है घर में। तो इससे मन बहुत उखड़ा हुआ सा है।

आचार्य प्रशांत: देखिए दो बातें हमें समझनी होंगी। बाल-मनोविज्ञान क्या क्या कहता है? बचपन के जो आरंभिक वर्ष होते हैं, सात साल, दस साल, उसमें बच्चे के ऊपर जिस तरह के प्रभाव पड़ गए वो उसकी ज़िन्दगी बना देते हैं या बिगाड़ देते हैं। हम अक्सर सोचते हैं कि जवानी में लोग आकर बिगड़ जाते हैं। नहीं, बिगड़ने का सबसे पहला काम बचपन में हो जाता है, वो भी सात-आठ साल, दस साल की उम्र से पहले ही।

तो छोटे बच्चों तक अगर भद्दे किस्म के, फूहड़ किस्म के, वयस्क किस्म के एडल्ट गाने पहुँच रहे हैं तो वो बच्चे ज़िंदगी भर के लिए मानसिक तौर पर विकृत हो जाते हैं। आपको जो खिन्नता हो रही है, जो परेशानी हो रही है वो जायज़ है। वो ग़लत नहीं है।

अध्यात्म क्या कहता है इस बारे में? भगवद्गीता का दूसरा अध्याय है, उसमें श्रीकृष्ण कुछ बड़ी रोचक बातें कहते हैं अर्जुन से, कि, "अर्जुन यश, कीर्ति, प्रसिद्धि ये हल्की चीज़ें नहीं हैं।" अर्जुन से कहते हैं — "ऐसा कुछ काम मत कर देना जिससे तुम्हें अपयश मिले, जिससे समाज के लोगों में तुम्हारा नाम खराब हो।"

क्यों कहते हैं ऐसा?

समझाते हैं अर्जुन को, कहते हैं, "क्योंकि जिस समाज में जिन लोगों को प्रसिद्धि मिल गई, वो समाज वैसा ही हो जाता है और जो लोग महत्वपूर्ण होते हैं, जो लोग प्रसिद्धिवान हो गए या ताक़तवर हो गए…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org