पढ़ाई, संसार, और जीवन के निर्णय

प्रश्न: आचार्य जी, कल मेरी परीक्षा है, लेकिन मन शांत नहीं है। मैंने प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय वर्ष में विश्वविद्यालय में प्रथम स्थान प्राप्त किया। पर इस वर्ष ऐसा हो रहा है कि मन बड़ा अशांत है। कुछ ही घंटे बचे हैं। आपका आशीर्वाद मिल जाएगा तो कल का दिन बहुत ही अच्छा जाएगा।

आचार्य प्रशांत: आशीर्वाद लेने से क्या होगा, जाकर पढ़ाई करो बेटा। यही आशीर्वाद है। और मन को क्यों इतना महत्त्व दे रहो कि शांत है या अशांत है। हो गया मन शांत, तो उससे क्या पा जाओगे? मन तुम्हारी छाया है। तुम दृढ़तापूर्वक चल पड़ो कहीं को, छाया को पीछे-पीछे आना ही पड़ेगा। ऐसा हुआ कि किसी की छाया ने कहा हो कि “मैंने तो खूँटा पकड़ लिया, अब तुम्हें आगे जाने दूँगी”? तुम छाया का निर्धारण करते हो, छाया तुम्हारा निर्धारण नहीं कर सकती।

मन तो तुम्हारा तुम्हारे पीछे-पीछे आएगा, तुम जान तो दिखाओ।

मन की शांति-अशांति, सहमति-असहमति, इनकी परवाह नहीं किया करते। जानते हो मन पर कितने तरह के प्रभाव पड़ते हैं इधर से, उधर से? गिनती भी नहीं कर पाओगे। लाखों सालों के संचित प्रभावों का नाम है ‘मन’। उसको तो कोई भी, किधर को भी खींच सकता है। लेकिन ये याद रखो कि तुम्हारी ताक़त, आत्मा की ताक़त, मन पर पड़ते किसी प्रभाव की नहीं है।

दोनों बातें बोल रहा हूँ ।

एक तो ये कि मन पर करोड़ों प्रभाव आजतक पड़े हैं, और मन ने उनको सोख लिया है, अंगिकार कर लिया है। वो तुम्हें कभी इधर को, कभी उधर को ढकेलते रहते हैं। और दूसरी बात मैं कह रहा हूँ कि मन पर आजतक जितने प्रभाव पड़े हैं उनका कुल…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org