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पढ़ने बैठो तो मन भागता है

पढ़ने बैठो तो मन भागता है

प्रश्न: आचार्य जी प्रणाम! मेरा प्रश्न कि — मन तो कैसे एकाग्र रखें? मैं कोई एक विषय पढ़ता हूँ तो दूसरे विषय में चला जाता हूँ। मन को कैसे एकाग्र रखूँ?

आचार्य प्रशांत: क्यों पढ़ते हो?

प्रश्नकर्ता: पढ़ाई में आगे बढ़ने के लिए।

आचार्य प्रशांत: तुमने ख़ुद चुना है पढ़ना?

प्रश्नकर्ता: चिकित्सा विज्ञान का छात्र हूँ, चिकित्सक बनकर लोगों की सेवा करनी है, तो पढ़ना तो पड़ता है।

आचार्य प्रशांत: यहाँ बैठकर मुझे सुन रहे हो, तो क्या मन जा रहा है चिकित्सा विज्ञान के विषयों की ओर? अभी पिछले दो घंटों में कितनी बार तुमने अपने चिकित्सा विज्ञान के पाठ्यक्रम का विचार किया कि — फलाने अध्याय में ये लिखा है, फलाना डायग्राम (आरेख) ऐसा है, फलाना रिएक्शन (रासायनिक प्रतिक्रिया) ऐसे होता है?

प्रश्नकर्ता: अभी तो नहीं।

आचार्य प्रशांत: तो क्यों नहीं किया?

प्रश्नकर्ता: जहाँ पर हूँ वहाँ पर फोकस करना चाहिए इसलिए।

आचार्य प्रशांत: क़िताब भी जब सामने रहती है तो उसपर फोकस क्यों नहीं कर लेते?

इसलिए नहीं कर लेते क्योंकि उसकी क़ीमत अपने आप को नहीं बताते हो। और आवश्यक नहीं है कि उसकी क़ीमत हो। क़ीमत तो व्यक्ति के परिपेक्ष में ही होती है। तुमने अगर ख़ुद चुनी है चिकित्सा विज्ञान की पढ़ाई, जैसा कि कह रहे हो कि डॉक्टर बनकर लोगों की सेवा करना चाहते हो, या हो सकता है मेवा खाना चाहते हो, अगर ख़ुद चुना है — सेवा चाहे मेवा- तो फिर तुम्हें पता…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant
आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

Written by आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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