पढ़ने बैठो तो मन भागता है
कोई चीज़ क़ीमती है, ज़रूरी है, तभी तो चुनी है। अगर वो ज़रूरी है, तो फिर वो तुम्हारा ध्यान खींचेगी। नहीं खींच रही है लेकिन, ये तुम्हारा अनुभव है, जैसा कि तुम्हारा कहना है। तो इसका मतलब ये है कि तुम जो कुछ कर रहे हो उसमें तुम्हारा चुनाव निहित नहीं है, कोई ज़ोर-ज़बरदस्ती चल रही है।
सच्चा चुनाव वास्तव में प्रेम होता है।
इसीलिए वो अ-चुनाव होता है।