प्रेम व्यक्त करते डरता क्यों हूँ?

हम प्रेम नहीं जानते, प्रेम के नाम पर आकर्षण जानते हैं और आकर्षण बिल्कुल मुर्दा चीज़ है। प्रेम से ज़्यादा ज़िंदा कुछ नहीं और आकर्षण से ज़्यादा मुर्दा कुछ नहीं। आकर्षण तो वैसा ही है जैसा कि दो रसायन आपस में मिल जाएँ, उनमें भी आकर्षण होता है आपस में, खूब आकर्षण होता है। लोहे और चुम्बक में आकर्षण होता है, वो प्रेम तो नहीं है। एक ख़ास उम्र में आते हो, शरीर में कुछ रासायनिक क्रियाएँ शुरू हो जाती हैं, हॉर्मोन्स एक्टिव हो जाते हैं, इस कारण…

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org