प्रेम में तोहफ़े नहीं दिए जाते, स्वयं को दिया जाता है

प्रश्नकर्ता (प्र): सर, आपने कहा था कि तुम्हें कैसे पता कि खीर पसंद है कि मक्खन। तो अगर हम प्रेम से भोग लगा रहे हैं, तो क्या वो भी वैसी ही बात हुई?

आचार्य प्रशांत (आचार्य): प्रेम प्रमुख है न। न पत्र, न पुष्प, न फल। प्रमुख क्या है? प्रेम। अब प्रेम से देने के लिए, देखिये, कोई बहुत बड़ी चीज़ें तो नहीं कही गई हैं। पत्र माने पत्ता, पुष्प माने फूल, न सोना न चांदी। फूल, पत्ता। प्यार से फूल, पत्ता चढ़ा दो बढ़िया है, बहुत है, काफ़ी है। और जिस समय में गीता कही गई थी उस समय में प्रचुरता थी पत्र और पुष्प की, फलों की। तो जब कहा जा रहा है कि फूल, पत्ता, फल तो यही कहा जा रहा है कि वही चढ़ा दो, जो सर्वाधिक सुलभ है। जो यूँ ही मिल जाएगा चलते-फिरते, फूल, पत्ता, फल चढ़ा दो। ये कहा गया है कि जा कर के कोई विशेष फल लेकर आओ या कोई विशेष पुष्प ले कर आओ? कोई ऐसा फूल माँगा है कृष्ण ने कि जो फ्रांस में उगता हो? इतना ही कहा है कि भाई, यही सब ठीक है। अगल-बगल, किनारे, इधर-उधर, जो मिले।

प्र१: ये भी तो कई बार होता है न कि इंगित किया जाता है और हम लोग शब्द पकड़ लेते हैं।

प्र२: हाँ, वो तो है। पर इसमें ये है कि अगर, “मैं खीर का भोग लगा रही हूँ”, तो उसमें मैंने अपने अहम् का उपयोग किया है या प्रेम का? वो कैसे पता लगेगा? क्योंकि मैंने तो बहुत प्रेम से बनाया, पर मुझे तो भगवन ने नहीं आ के कहा कि, “मेरे लिए खीर बनाओ।’’

आचार्य: जब प्रेम होगा तब खीर ही नहीं देंगी आप, सब कुछ देंगी। आपको जिससे प्रेम होता है, आपका एक नाखून बड़ा…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org