Sitemap

Member-only story

प्रेम — मीठे- कड़वे के परे

कुरबाणु कीता तिसै विटहु, जिनि मोहु मीठा लाइआ ॥
– गुरु नानक

आचार्य प्रशांत: “कुरबाणु कीता तिसै विटहु, जिनि मोहु मीठा लाइआ” — मैं उस पर कुरबान जाता हूँ जिसने मोह को मीठा बना दिया है।

मोह हमेशा कड़वा होता है। मोह का अर्थ है अपने से बाहर किसी से जुड़ना। वो हमेशा ही कड़वा होता है। मीठा मोह असंभव है। तो जब मीठे मोह की बात की जा रही है, तो अर्थ है कि जिसने मोह का कड़वा होना असंभव कर दिया।

यहाँ ‘जिससे’ जुड़ना किसी व्यक्ति से जुड़ना नहीं है, लेकिन इसको दूसरे अर्थ में पढ़ना बहुत आसान है।

इसका जो अंग्रेजी अनुवाद है, वो है, “आई ऍम सैक्रिफ़ाइस्ड, सैक्रिफ़ाइस्ड टू द वन हू हैस मेड इमोशनल अटैचमेंट्स स्वीट*।” बड़ा आसान है इसको यह पढ़ लेना कि जो भक्त लोग होते हैं वो स्वीट, *इमोशनल अटैचमेंट्स (मीठे, भावुक मोह) में रहते हैं। बहुत आसान है इसका ये अर्थ कर लेना; और ये अर्थ का अनर्थ है।

देखिये, संत बहुत-बहुत गहरे ध्यान से बोलता है। उसकी बातों का यूँ ही चलते-फिरते अर्थ मत कर लिया कीजिए। अद्वैत के फेसबुक पेज पर एक पोस्टर है जिसमें लिखा है, “कृष्ण को समझने के लिए, कृष्ण जैसा ही होना पड़ेगा।”

कृष्ण को जब पढ़ रहे हों, गीता को जब पढ़ रहे हों, तो थोड़ा ठहर कर, पूरे ध्यान में आइए, और ये सवाल पूछिए अपने आप से, “क्या मैं कृष्णत्व के आसपास हूँ?” अगर ज़रा भी आसपास नहीं हैं, तो आप बड़ा नुकसान कर रहे हैं अपना, गीता पढ़कर।

--

--

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant
आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

Written by आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

No responses yet