प्रेम बेगार नहीं है

प्रश्नकर्ता (प्र): सर, अगर मैं किसी के साथ कोई सम्बन्ध या दोस्ती रखूं, तो क्या हर बात को पूरा करने की ज़िम्मेदारी मेरी ही बनती है या उसमें दूसरे की भी कुछ सहभागिता होनी चाहिए?

आचार्य प्रशांत (आचार्य): देखो, सामने वाले को पूरा समझा जाता है, पूरा जाना जाता है। ठीक है? जब जानते हो, समझते हो कि मामला क्या है, उसके बाद तुम शर्तें नहीं रखते। यह नहीं कहते हो, ‘मैं इतना कर रहा हूँ, तुझे भी इतना करना है’। तुम अपनी ओर से पूरा करते हो क्योंकि वो पूरा करने में तुम्हें खुद ही मज़ा आ रहा है। तुम यह उसकी खातिर भी नहीं कर रहे हो। तुम इसलिए नहीं कर रहे हो कि तुम्हारा दायित्व है दोस्ती में किसी की मदद करना। तुम यह कर रहे हो क्योंकि तुम्हारी अपनी मौज है।

मुझे घूमना है, मैं तुझे अपने साथ ले जा रहा हूँ। मैं तुझे अपने साथ इसलिए नहीं ले जा रहा कि मेरा फर्ज़ है कि दोस्त के साथ ही जाना है। मैं तुझे अपने साथ इसलिए ले जा रहा हूँ क्योंकि तू साथ रहता है तो मज़ा दोगुना हो जाता है। मैं गिनती नहीं कर रहा हूँ कि मैं तेरे लिए क्या-क्या कर रहा हूँ, क्योंकि मैं तेरे लिए तो कुछ कर ही नहीं रहा। देने में मेरा अपना आनंद है। अगर मैं तुझे कुछ देता भी हूँ, तो उसमें मज़ा मेरा ही है’।

लेकिन ये जो देना है न, यह बेहोशी में न हो। इसलिए मैंने पहली बात यही कही थी कि समझा जाता है। ‘दिया जाता’ तो गुलामी में भी है, गुलाम भी देता है। बेगार जानते हो क्या होती है? ‘बेगार’ शब्द सुना है?

प्र १: हाँ, सर।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org