प्रेम बिना जीवन कैसा?

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, प्रणाम। मेरा प्रश्न है कि प्रेम क्या है और हम प्रेममय जीवन कैसे जी सकते हैं? बिना प्रेम का जीवन और प्रेममय जीवन में क्या अंतर होता है और उस अंतर को हम कैसे देख सकते हैं?

आचार्य प्रशांत: बिना प्रेम का जीवन ऐसा है जैसे सूखा पत्ता उड़ रहा है हवाओं के साथ, उसे कहीं नहीं पहुँचना। उसे जहाँ हवाएँ ले जाएँ वो उधर का हो जाता है। बिना प्रेम का जीवन ऐसा है जैसे कोई शराबी लड़खड़ाता घूम रहा हो गलियों में। उसे मंज़िल का कुछ पता नहीं। जो उसका मुंह जिधर को मोड़ देगा वो उधर को चल देगा। उसके हृदय में कोई पुलक नहीं है। उसके मन में कोई ललक नहीं है। उसका कोई एक केंद्र नहीं है, जो किसी एक को तलाश रहा हो, पुकार रहा हो। तो फिर वो सारे ज़माने का है, जो जिधर को खींच ले वो उधर का हो जाता है। उसके लिए संसार बड़ा अर्थ-पूर्ण हो जाता है। उसको जो कुछ दिखाई देता है वही उसके लिए महत्वपूर्ण है।

प्रेमी की बात दूसरी है, उसे ज़्यादा कुछ दिखाई ही नहीं देता। उसे एक जगह जाना है, उसे एक को ही पाना है। बिना प्रेम का जीवन ऐसा है कि जैसे लोग आते हैं कि मिड कैरियर क्राइसिस (मध्य कैरियर संकट) चल रही है, अब क्या करें? तो कुछ देर तक बोलेंगे, “मुझे लगता है एजुकेशन में चले जाना चाहिए।” अच्छा! फिर थोड़ी बात बढ़ेगी, कहेंगे, “नहीं, रियल एस्टेट चले जाते हैं।” एजुकेशन से रियल एस्टेट! फिर कहेंगे, “नहीं, मुझे लग रहा है कि रिटेल का भविष्य सुनहरा है बिल्कुल।” फिर कहेंगे, “नहीं, भारत तरक्की कर रहा है, टूरिज़्म में जाएंगे, हॉस्पिटैलिटी में जाएंगे।” ये बिना प्रेम का जीवन है। बात समझ में आ रही है?

--

--

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org