प्रेम पहले है, बाद में ज्ञान

नानक से प्यार होगा तो जपुजी खुद ही पढ़ लोगे, प्यार ही नहीं हुआ है तो जपुजी तुम्हें बोझ लगेगी। कृष्ण से प्यार किए बिना अगर तुमने गीता पढ़ी तो बड़े पत्थर आदमी हो। तुमने पढ़ कैसे डाली, ये १८ अध्याय झेले कैसे तुमने?

कबीर के दोहे पढ़ते हो सकता है समझ न आते हो क्योंकि तुम्हारी भाषा वो नहीं है लेकिन फिर भी कोई नाता जुड़ गया हो, बाकी कुछ भी न पता हो लेकिन कबीर पता हो तब समझना कि कुछ हुआ।

हमें बाइबिल नहीं याद है; ग्रन्थ है भूल सकते हैं लेकिन हमें जीसस याद हैं। गीता हमें नहीं पता हमारे कितने पास है लेकिन कृष्ण हमारे बहुत पास हैं तो फिर होगा कोई भी श्लोक पर श्लोक के पीछे के कृष्ण हमें पता है। वह दिल में हैं प्रेमी की तरह। जब हृदय में कृष्ण होते हैं तो मन के सामने गीता खुद खुलती जाती है।

ज्ञान प्रेम के पीछे-पीछे अपने आप चला आता है।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org