प्रेम और बोध साथ ही पनपते हैं
दो रास्ते रहे हैं सदा जिनकी मंज़िल एक ही है। ‘ज्ञान’ का और ‘प्रेम’ का।
ज्ञानमार्गी कहता है, “मुझे स्वयं को पाना है,” और स्वयं को पाने में वो संसार को बाधा मानता है। वो कहता है, “स्वयं को इसी कारण नहीं पा पा रहा क्योंकि मेरी दृष्टि संसार की ओर लगी हुई है।” वो अंतर्गमन माँगता है। कहता है, “जहाँ संसार से मुक्ति मिली, तहाँ अपने को पा लूँगा।” इसी कारण उसके शब्दकोश में, ‘त्याग’ एक बड़ा महत्त्वपूर्ण शब्द हो जाता है। वो…