प्रेम — आत्मा की पुकार

उठा बगुला प्रेम का, तिनका चढ़ा आकाश।
तिनका तिनके से मिला, तिनका तिनके पास ।।
~ संत कबीर

आचार्य प्रशांत: प्रेम से मन बचता ही इसीलिए है, उसको तमाम सीमाओं, वर्जनाओं में बाँधता ही इसीलिए है, उससे संबंधित नफ़े-नुकसान के तमाम किस्से गढ़ता ही इसीलिए है, क्योंकि अदम्य होता है प्रेम, एक विस्फोट की तरह। ऐसी उसकी असीम शक्ति होती है, कि उसके आगे ना मन ठहर सकता है, ना मन के तमाम तर्क।

जो हमारा साधारण प्रेम होता है, आदमी-औरत के प्रति, जो खिंचाव होता है मान-सम्मान के प्रति, जो आकर्षण होता है वस्तुओं के प्रति, इसी में बड़ी ताक़त आ जाती है। जबकि ये वास्तविक प्रेम की छाया भर भी नहीं है। लेकिन देखा है, जब किसी स्त्री से, पुरुष से, प्रेम की लहर उठती है, तो जीवन में कैसी ख़ुशबू, बहार जैसी आ जाती है? कैसी ताज़गी, कैसी ऊर्जा, जैसे चारों तरफ़ एक उत्सव हो। और ये बड़ा साधारण प्रेम है।

पूरा अस्तित्व लगता है जैसे नाच रहा हो, फूले नहीं समाते, अघाए-अघाए फिरते हो। ऐसा लगता है जैसे मुट्ठी में आकाश क़ैद कर लिया हो, जैसे सब कुछ मिल गया हो। ये अनुभव तो हुआ ही होगा? सभी गुज़रे ही होंगे इससे। तो ये तो साधारण आकर्षण है, इसी में इतनी तीव्रता होती है।

वास्तविक प्रेम, आध्यात्मिक प्रेम, वो तो वास्तविक रूप से अदम्य होता है।

तुम्हारा साधारण प्रेम तो एक सीमा के बाद दबाया जा सकता है, कुचला जा सकता है। तुम जानते हो, तुम्हें अच्छे से पता है प्रेम की ताक़त का। उसके आगे तुम्हारे सारे तर्क हार जाते हैं। असल में…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org