प्रेम — आत्मा की पुकार
उठा बगुला प्रेम का, तिनका चढ़ा आकाश।
तिनका तिनके से मिला, तिनका तिनके पास ।।
~ संत कबीर
आचार्य प्रशांत: प्रेम से मन बचता ही इसीलिए है, उसको तमाम सीमाओं, वर्जनाओं में बाँधता ही इसीलिए है, उससे संबंधित नफ़े-नुकसान के तमाम किस्से गढ़ता ही इसीलिए है, क्योंकि अदम्य होता है प्रेम, एक विस्फोट की तरह। ऐसी उसकी असीम शक्ति होती है, कि उसके आगे ना मन ठहर सकता है, ना मन के तमाम तर्क।