प्रेमियों का प्रेम अक्सर हिंसामात्र
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दुनिया अब और ऐसी होती जा रही है जिसमें भोगने पर ज़ोर है। जिंदगी से और ज़्यादा वसूल लेने पर ज़ोर है। ‘जितना ज़्यादा ज़िन्दगी से नोच खसोट सकते हो नोच खसोट लो।’ तुम्हें लगातार यही शिक्षा दी जा रही है। ‘भोग लो, चूस लो, एक बूँद भी छूट ना जाए।’
और वो हो नहीं पाता क्योंकि जितना तुम्हें चाहिए उतना तुम्हारी क्षमता के बाहर का है और जितना तुम्हें चाहिए उतना औरों को भी चाहिए। जितना तुम्हें चाहिए वो असीमित है, इसलिए कभी तुम्हारी इच्छा पूरी हो पाए यह हो नहीं सकता। लगातार कहा तुमसे यही जा रहा है कि इच्छाएं और रखो, और बढाओ; नतीजा हिंसा है।
तुम प्रमाण रूप यह देख लो कि तुम सबसे ज़्यादा हिंसक उनके प्रति होते हो जिनसे तुम्हारा कभी ना कभी सम्बन्ध मोह का रहा होता है। उस मोह को कभी-कभार तुम प्रेम का नाम दे देते हो, प्रेम होता नहीं है। पर जो प्रेम वाले रिश्ते होते हैं उनमें जब हिंसा का विस्फोट होता है, तो बड़ा भयानक होता है क्योंकि चाहते बहुत कुछ थे न। जो दूर के हैं उनसे तो फिर भी कम चाहते हो, जो तुम्हारे करीबी हैं उनसे तो तुम सभी कुछ चाहते हो। और जो चाहते हो वो हो नहीं पायेगा, नतीजा हिंसा है। हो सकता है उस हिंसा का एक बार में विस्फोट ना हो। अगर एक बार में नहीं होगा तो फिर वो एक पुराने घाव की तरह टीस देता रहेगा। एक सतह के नीचे चलने वाली निरंतर हिंसा लगातार बनी रहेगी। तुम अगर संवेदनशील नहीं हो तो तुम्हें लगेगा हिंसा नहीं है, पर सतह के नीचे हिंसा लगातार है। जितना तुम्हारी पा लेने की इच्छा, जितना तुम्हारी भोगने की अभीप्सा, जितना तुम्हारा हीनता का भाव, जितना तुम्हारा लालच, उतना ही तुम्हारा क्रोध और तुम्हारी हिंसा।
दूसरों से दो ही तरह के सम्बन्ध हो सकते हैं, या तो प्रेम के या फिर कामना के। कामना के सम्बन्ध तुम्हारे जिससे भी हैं, सावधान हो जाना, हिंसा मौजूद है, हो सकता है तुम्हें दिख ना रही हो। हिंसा मौजूद है, उसका फल भी भुगत रहे हो, कष्ट भी पा रहे हो।
प्रेम का सम्बन्ध बिल्कुल दूसरी बात होती है। प्रेम के सम्बन्ध में बुनियादी चीज़ होती है अपनी आतंरिक परिपूर्णता। मैं तुमसे इसलिए नहीं जुड़ा हूँ कि मुझे तुमसे कुछ चाहिए। मैं तुम्हें तुमको भोगने के लिए नहीं जुड़ा हूँ। मैं तुमसे इसलिए नहीं सम्बंधित हुआ हूँ कि मैं तुमको भोग लूँ, तुमसे कुछ पा लूँ; यह प्रेम है।
प्रेम माने जब किसी से यूँही बिना वजह, अकारण, निःस्वार्थ, जुड़ गए हो। वजह कुछ नहीं, सम्बन्ध फिर भी है। अगर वैसा कुछ भी है तुम्हारी ज़िन्दगी में तो वो प्रेम है।
वजह कुछ नहीं, नाता फिर भी है, तो यह नाता प्रेम का हुआ। और जहाँ कहीं भी नाते के पीछे वजह है, वहाँ तुम चाह रहे हो। जहाँ तुम्हारा चाहना है वहीं पर नफरत, घृणा, हिंसा, ये सब…