प्राण क्या हैं?

उपनिषद् कहते हैं, “प्राण ही ब्रह्म है।” मिट्टी का आपका शरीर है, उसमें जितनी प्रक्रियाएँ होती हैं, वो सब यांत्रिक हैं। पर कुछ ऐसा भी घटित होने लगता है इस शरीर में जो यांत्रिक नहीं है। जो कुछ भी यांत्रिक है, उसका कारण होता है। कुछ ऐसा भी घटित होने लग जाता है इस शरीर में जो यांत्रिक नहीं है।

आप आनंद अनुभव कर सकते हैं, आप बोध में उतर सकते हैं। आप प्रेम में डूब सकते हैं। ये बड़ी विलक्षण घटना घटी। मिट्टी को प्रेम का अनुभव होने लग गया।

शरीर मिट्टी ही है न? मिट्टी, हवा, पानी, इनसे बना शरीर, और उस शरीर से उपनिषद् फूटने लग गए। ‘वो’ है जो आपके भीतर, जिससे उपनिषद् फूटने लग जाते हैं, उसे ‘प्राण’ कहते हैं। ‘वो’ जो आपके भीतर प्रेम का अनुभव कर सकता है, उसे ‘प्राण’ कहते हैं। वही जान है आपकी, वही ‘प्राण’ हैं आपके। यदि आपके जीवन में बोध नहीं और आनंद नहीं, प्रेम नहीं, तो आप निष्प्राण हैं। फिर आप मिट्टी ही भर हैं।

वो जादू जो मिट्टी में प्रेम उतार देता है, उसे ‘प्राण’ कहते हैं। इसीलिए उपनिषद् कहते हैं, “प्राण ही ब्रह्म हैं।” ‘वो’ कुछ ऐसा कर देता है जो हो नहीं सकता था। राख हो जाना है आपको, और राख से ही आए हो आप। पर इस राख की उड़ान देखो, इस राख की समझ देखो, इस राख की गहराई देखो — ये ‘प्राण’ कहलाती है, ये ‘प्राण’ है।

जीवन तभी है जब उसमें प्राण हों। और ‘प्राण’ का मतलब साँस मत समझ लीजिएगा कि साँस चल रही है, तो मैं प्राणी हुआ। आप प्राणवान केवल तब हैं, जब आपके जीवन में ‘वो’ मौजूद है जो आपके जीवन को जीने काबिल बनाता है, अन्यथा आप अपने आपको मुर्दा और निष्प्राण ही मानें।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org