प्रश्न असली हो तो ही लाभकारी

प्रश्न असली हो तो ही लाभकारी

प्रश्नकर्ता: प्रणाम, आचार्य जी। बहुत बहुत धन्यवाद। आपके कोर्सेज़ को मैं यूट्यूब पर भी सुने हैं। कुछ मैंने ऑनलाइन सत्र भी अटेंड किए है।

मेरा जो प्रश्न है वो ये है कि मेरा मोटिवेशन लेवल बहुत फ्ल्कचुएट (ऊपर-नीचे) होता है। दिन में ही कई बार बहुत डिप (नीचे) में भी चला जाता है। ऐसा लगता है कि मुझे किसी साइकैटरिस्ट (मनोचिकित्सक) या डॉक्टर की मदद लेनी चाहिए। पर कई बार मैं अपनेआप को बड़ा अच्छा पाता हूँ, जैसे कि मैं जब आपकी यूट्यूब पर सुनूंगा कोई चीज़। मैंने कुछ आपकी किताबें भी सब्सक्राइब की हुई हैं; उनको जब सुनता हूँ तो मोटिवेशन लेवल अच्छा हो जाता है। एक-दो घंटे रहता है फिर बहुत नीचे चला जाता है। और उसके जो तीन चार कारण हैं, जितना मुझे समझ आया। शायद वो कारण अभी ज़ाहिर लगते हैं। शायद वो नहीं हैं लेकिन फिर भी हैं।

जैसे मेरे को मेडिकल समस्याएँ आजकल बहुत ज़्यादा चल रही हैं, अपनी खुद की और मेरी मदर को भी हैं। तो उसको लेकर मैं कई बार बहुत डिमोटिवेटेड (हताश) हो जाता हूँ। और दूसरा, जैसे मेरी बेटी बाहर विदेश में पढ़ती है। तो मुझे ऐसा लगता है कि उसको अब भारत जल्दी से जल्दी वापस आ जाना चाहिए। इतनी दूर नहीं रहना चाहिए।

तो इस तरह से मैं कोई ना कोई विषय चुन लेता हूँ और डिमोटिवेट हो जाता हूँ। फिर मैं कुछ सुनता हूँ यूट्यूब पर आपका या आपकी पुस्तकें पढ़ता हूँ तो मैं अपना मोटिवेशन लेवल वापस कर पाता हूँ। लेकिन मैं चेतना का तल उतना नहीं बढ़ा पा रहा हूँ, साहस 24*7 नहीं रख पाता हूँ; नीचे कर जाता है। ऐसा लगता है कि मुझे मनोचिकित्सक से बात करने की ज़रूरत है क्या। तो ज़रा मार्गदर्शन करें इसमें।

आचार्य प्रशांत: आपने उसने कितना समय और कितनी ऊर्जा लगा ली कि चेतना का तल उठ जाए? इतना सस्ता है काम? मैं जो बातें आपसे बोलता हूँ वो बातें बोलने के लिए मैंने अपनी पूरी ज़िन्दगी लगाई है। आपने कितने दिन, हफ्ते या महीने या साल लगाए हैं?

प्र: आपको मैंने पिछले साल अक्टूबर से सुनना शुरू किया है। उससे पहले मैं ओशो को काफी सुनता था, लेकिन अक्टूबर से आपको काफी…

आचार्य: आप समझ ही नहीं रहे न मैं क्या कह रहा हूँ। हम नहीं जानते कि हम कितने पानी में हैं इसलिए हमें नहीं पता होता कि हमें बाहर आने के लिए कितनी ज़्यादा मेहनत की ज़रूरत है। अभी बहुत समय लगेगा और बहुत श्रम। ये खेल इतना नहीं आसान है। और अगर आप मुझसे पहले कुछ और पढ़ते थे, सुनते थे, किन्हीं और चीज़ों में विश्वास करते थे तो मेरा काम और कठिन हो जाता है। पहले तो पुरानी बातें रगड़ के साफ करनी पड़ती हैं, दूना काम करना पड़ता है फिर।

तो ये ऐसा कुछ नहीं है कि एक तरह की ज़िंदगी जी और फिर तीन चार महीने गीता का कोर्स कर लिया, एक-आध बार…

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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