प्रयत्न माने क्या?

मन का एक हिस्सा शरीर से संयुक्त है, शरीर थका हुआ है तो मन का वो हिस्सा क्या कह रहा है? — “मत कर!” मन का दूसरा हिस्सा ज्ञान से संयुक्त है, वो कह रहा है कि “शरीर थका हुआ भी है तो तू कर”, अब जो होगा, उसे प्रयत्न कहते हैं।

प्रयास कभी भी शारीरिक नहीं होता; प्रयास हमेशा मानसिक होता है।

प्रयास का मतलब है कि मन में घमासान मचा हुआ है कि करें कि न करें, वो प्रयत्न है। तुमको किसी को बस एक जवाब देना है, हाँ या ना का, देखा है कि हाथ कांप जाते हैं, लिखने में दिक्क्त हो जाती है कि वाई (हाँ) टाइप करूँ या एन (नहीं) टाइप करूँ, ज़बरदस्त प्रयत्न लग रहा है! अब बताओ क्या इसमें शरीर थक रहा है वाई या एन दबाने में? क्या शरीर थक रहा है? लेकिन प्रयास बहुत लग रहा है। लग रहा है कि नहीं लग रहा है?

लोगों को देखा होगा वो जाते हैं प्रपोस (प्रस्ताव) वगैरह करने, अब वहाँ पर मुँह नहीं खुल रहा है, ज़बान चिपक गयी है। अब शारीरिक श्रम इसमें क्या है? या तुम पोडियम (मंच) में खड़े हो, एच.आई.डी.पी. चल रहा तुम्हारा और प्रेज़ेन्टेशन (प्रदर्शन) करने के लिए मुँह से आवाज़ नहीं निकल रही है। अब क्या शरीर थका हुआ है? पर प्रयास ज़बरदस्त है; प्रयास हमेशा मानसिक होता है। जब कभी भी मन विरोध ही न करे, तो प्रयास कैसा?

शरीर थका है, बहुत बुरी तरह थका है लेकिन मन एक है, इंट्रीग्रेटिड (एकीकृत) है, और उसे अच्छे से पता है कि अभी क्या होना है, उसके पास कोई विकल्प ही नहीं है तो वहाँ कोई प्रयत्न नहीं है।

प्रयत्न सिर्फ़ तब है जब विकल्प हैं।

प्रयत्न सिर्फ़ तब है जब दो हैं, हिस्से हैं।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org