प्रदूषण हुआ, पृथ्वी तबाह हुई, तुम्हारे घर खुशियाँ तो आईं
1 min readMay 13, 2020
हमारी खुशियाँ खा गईं पृथ्वी को। इतना भोगा कि पृथ्वी को ही खा गए।
हमारी खुशियों का अर्थ भोग है।
जब तक आदमी अधूरा और बेचैन है, वो पकड़ेगा और भोगेगा। झूठी खुशी की खातिर।
ये बात सरकारें नहीं समझा सकतीं, न ही सामाजिक नैतिकता। ये बात तो अध्यात्म ही बताएगा।
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