प्रदूषण हुआ, पृथ्वी तबाह हुई, तुम्हारे घर खुशियाँ तो आईं
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हमारी खुशियाँ खा गईं पृथ्वी को। इतना भोगा कि पृथ्वी को ही खा गए।
हमारी खुशियों का अर्थ भोग है।
जब तक आदमी अधूरा और बेचैन है, वो पकड़ेगा और भोगेगा। झूठी खुशी की खातिर।
ये बात सरकारें नहीं समझा सकतीं, न ही सामाजिक नैतिकता। ये बात तो अध्यात्म ही बताएगा।
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