Jul 13, 2022
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प्रतिदिन भीतर-ही-भीतर
यह प्रण दोहराया करो कि
जहाँ कहीं भी सच और झूठ सामने होंगे,
मैं सच को ‘हाँ’ बोलूँगा-ही-बोलूँगा,
चाहे बुरा लग रहा हो,
चाहे आलस आ रहा हो।
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प्रतिदिन भीतर-ही-भीतर
यह प्रण दोहराया करो कि
जहाँ कहीं भी सच और झूठ सामने होंगे,
मैं सच को ‘हाँ’ बोलूँगा-ही-बोलूँगा,
चाहे बुरा लग रहा हो,
चाहे आलस आ रहा हो।
रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org