प्रचलित लोकोक्तियों और मुहावरों में छुपे झूठ
प्रश्नकर्ता: सर भाषा से मन बनता भी है और प्रदर्शित भी होता है। बचपन से ही कुछ मुहावरे, जुमले इतने ज़्यादा सुने कि अब वो भीतर की धारणा बन गए हैं। मैं चाहता हूँ कि आप इन पर कुछ बोलें। कुछ उदाहरण हैं — आइए अपना ही घर समझिए, बी पॉजिटिव, भगवान पर भरोसा रखो, दुनिया ऐसे ही चलती है, सीखो डूब कर, ऊपर वाला जो करता है सही ही करता है। इसी तरह के कई अन्य मुहावरे और लोकोक्तियाँ हैं। बचपन से ही हमें इनके द्वारा संस्कारित कर दिया जाता है। कुछ कहिए।
आचार्य प्रशांत: जान तो तुम खुद ही रहे हो कि ये सब बातें कैसी हैं। मेरे मुँह से लेकिन सुनना चाहते हो। दिख भी रहा है कहीं…