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प्रकृति से आगे जाना है

आचार्य प्रशांतः वंदिता भाटिया हैं, दुबई से। चौदहवें अध्याय के तेरहवें, चौदहवें, पंद्रहवें श्लोक को उद्धरित किया है, जहाँ चर्चा हुई है — सत, रज, तम तीनों गुणों की।

अप्रकाशोऽप्रवृत्तिश्च प्रमादो मोह एव च ।

तमस्येतानि जायन्ते विवृद्धे कुरुनन्दन ।।13।।

भावार्थ : हे कुरुवंशी अर्जुन! जब तमोगुण विशेष वृद्धि को प्राप्त होता है तब अज्ञान रूपी अंधकार,

कर्तव्य-कर्मों को न करने की प्रवृत्ति, पागलपन की अवस्था और मोह के कारण न करने योग्य कार्य करने की प्रवृत्ति बढ़ने लगती हैं।

यदा सत्वे प्रवृद्धे तु प्रलयं याति देहभृत्।

तदोत्तमविदां लोकानमलान्प्रतिपद्यते।।14।।

भावार्थ : जब कोई मनुष्य सतोगुण की वृद्धि होने पर मृत्यु को प्राप्त होता है, तब वह उत्तम कर्म करने वालों के निर्मल स्वर्ग लोकों को प्राप्त होता है।

रजसि प्रलयं गत्वा कर्मसंगिषु जायते।

तथा प्रलीनस्तमसि मूढयोनिषु जायते।।15।।

भावार्थ : जब कोई मनुष्य रजोगुण की वृद्धि होने पर मृत्यु को प्राप्त होता है, तब वह सकाम कर्म करने वाले मनुष्यों में जन्म लेता है और उसी प्रकार तमोगुण की वृद्धि होने पर मृत्यु को प्राप्त मनुष्य पशु-पक्षियों आदि निम्न योनियों में जन्म लेता है।

फिर कह रही हैं कि — आचार्य जी, श्री कृष्ण कहते हैं कि अनादि परम ब्रह्म न सत् है न असत्; अनादि परम ब्रह्म न सत् है न असत्; कह रहीं हैं ये क्या बात है…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant
आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

Written by आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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