प्रकृति रिझाए मुक्ति बुलाए, बुरे फँसे हम

हम असुरक्षित हैं तभी तो रोज़-रोज़ सुरक्षा की तरफ भागते है। न सिर्फ़ हम असुरक्षित हैं बल्कि हमें सुरक्षा से प्यार है। उसी सुरक्षा को अध्यात्म ने नाम दिया है सत्य का, अंत का, मुक्ति का। वो जो इकलौती चीज़ जो प्रेम के, प्यार के योग्य है वही अध्यात्म का लक्ष्य है। असुरक्षित आदमी के लिए उस परम ध्येय का नाम है ‘सुरक्षा’। भयाक्रांत आदमी के लिए उस परम ध्येय का नाम है ‘निर्भयता’। बद्ध आदमी के लिए उस आखिरी मंज़िल का नाम है ‘मुक्ति’। बिखरे, खंडित आदमी के लिए उस मंज़िल का नाम है ‘योग’।

मन की प्रकृति है असुरक्षा और मन का स्वभाव है सुरक्षा। ये आदमी की पूरी कुण्डली है। वो अपनी प्रकृति और स्वभाव के बीच पिसा हुआ है। “दुइ पाटन के बीच में, साबुत बचा ना कोय”। दो पाटों के बीच में हम फंसे हुए हैं। एक तरफ ये त्रिगुणात्मक प्रकृति और दूसरी ओर स्वभाव।

तुम शुद्ध, बुद्ध, मुक्त हो। कुछ है तुम्हारे भीतर जो किसी भी तरह की विलासिता से, अय्याशी से संतुष्ट नहीं होता। प्रकृति बुलाती है, वादा करती है कि संतृप्ति देगी, पर मिल जाती है संतप्ती।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org