प्रकृति माँ है, पत्नी नहीं; नमन करो, भोग नहीं

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, प्रसंग में बताया गया है कि देवताओं ने बहुत लंबे समय तक सुख से राज्य किया, फिर उनके ऊपर दु:ख आया, तब जाकर उन्होंने देवी की स्तुति की। फिर आपने यह भी बताया कि धूल को लगातार साफ़ करते रहना होता है। हमारे साथ भी ऐसा ही होता है कि जब दु:ख आता है, तभी हम लोग याद करते हैं। जब सामान्य चल रहा होता है, सब कुछ सही होता है, तब ऐसा नहीं लगता कि धूल साफ़ करनी चाहिए, और फिर जब धूल हद से ज़्यादा बढ़ जाती है, तभी साफ़ करते हैं। तो क्या यह ऐसे ही होता है या हम ध्यान रख सकते हैं इसका?

आचार्य प्रशांत: देवी ही इसका कारण हैं। देवी के प्रति अज्ञान भी देवी का ही कार्य है। आप क्यों भूल जाते हो देवी को? उस भूल का कारण भी स्वयं देवी हैं। प्रकृति, देवी माने प्रकृति, प्रकृति में ही ये निहित है कि आप इस तथ्य को भूल जाओगे कि यह सब कुछ प्राकृतिक अर्थात क्षणभंगुर मात्र है। इसे थोड़ा गौर से समझिए, फिर से दोहराऊँगा।

यह बात प्रकृति में ही निहित है कि आप भूल जाओगे कि वह सब कुछ जिस पर आप इतरा रहे हो, जिससे आप संयुक्त हो गए हो, जिसको आप बचाना चाहते हो, जिसको आप मूल्य दे बैठे हो, जिसको आप अमर ही समझने लग गए हो, जिसको आप सत्य ही समझने लग गए हो, वो सब कुछ प्राकृतिक है। प्रकृति ही आपसे यह भुलवा देती है कि आप जिस बेहोशी के समुद्र में गोते मार रहे हो, वो प्राकृतिक है, वास्तविक नहीं। वास्तविक और प्राकृतिक में अंतर समझते हो? अध्यात्म की भाषा में वस्तु मात्र सत्य को कहा जाता है, वस्तु माने जो है, जो है। तो वास्तविक मात्र सत्य होता है।

प्राकृतिक जो है, वो वास्तविक नहीं है। हम आम बोल-चाल की भाषा में कह देते हैं कि ये रुमाल वास्तविक है (इशारा करते हुए), ये कलम वास्तविक है, ये माइक वास्तविक है। अध्यात्म में ऐसे नहीं कहते। अध्यात्म में कहेंगे कि ये सब क्या हैं? ये प्राकृतिक हैं। आप कहेंगे, “अरे! माइक प्राकृतिक कैसे हो गया? प्राकृतिक तो वो चीज़ें होती हैं न जो जंगल में पाई जाती हैं।” नहीं, जंगल में अगर मकड़े का जाला लगा हो तो उसे किसने बनाया? मकड़े ने। उसे आप प्राकृतिक मानते हो, नहीं मानते हो? मकड़े के जाले का निर्माण जंगल में किसने किया? या आपके घर में भी मकड़े के जाला लगा है तो उसका निर्माण किसने किया? मकड़े ने। तो मकड़े की निर्मित्ति को आप प्राकृतिक मानते हो कि नहीं मानते हो? मकड़े ने जाला बनाया; आदमी ने माइक बनाया। अगर वह मकड़ी का जाला प्राकृतिक है तो ये माइक भी प्राकृतिक है। ये सब प्राकृतिक हैं, अध्यात्म में ये वास्तविक नहीं हैं।

वास्तविक क्या है? मात्र सत्य। लेकिन प्रकृति के ही खेल में यह अविद्या भी निहित है, प्रकृति को अविद्या भी बोलते हैं, प्रकृति को माया भी बोलते हैं। प्रकृति के ही खेल में यह…

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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