प्रकृति बची रहेगी, ख़त्म इंसान होगा

इंसानियत जिस तरीके से जा रही है और जो हमने अभी पूरी तरीके से अहंकार पर आधारित जीने का ढांचा बना रखा है, वो या तो हमें बाहर से मार देगा और अगर बाहर से नहीं मारता संयोगवश तो भीतर से तो हमारा विनाश सुनिश्चित ही है बल्कि हो ही रहा है।

हम बहुत तेज़ी से एक ऐसी दुनिया की ओर बढ़ रहे हैं जिसमें हर आदमी पागल होगा। बाहर से स्वस्थ होगा और भीतर ही भीतर साइको

अब क्या करोगे, बताओ?

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org