पैसे नहीं कमाने?

कोई भी संस्था होगी उसमें सब गधे-घोड़े एक बराबर तो नहीं चलते होंगे न? वहाँ भी कोई ऊँचा, कोई नीचा। संस्था कैसे तय करती है? संस्था भी तो तुम्हारे काम की गुणवत्ता देखती है। तो उसका ख्याल रखना, नहीं तो ये अपने आप में एक बहुत ही निचले तल पर चलता हुआ कुचक्र बन जाता है। उस कुचक्र का क्या अर्थ है? उस कुचक्र में ये होता है कि, “मैंने काम यूँही किया घटिया जैसा तो मुझे पैसे कम मिले। मुझे पैसे कम मिले तो मैंने कम पैसे में ही जीने की आदत डाल ली। कम पैसे में जीने की आदत डाल…

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org