पैसे नहीं कमाने?

कोई भी संस्था होगी उसमें सब गधे-घोड़े एक बराबर तो नहीं चलते होंगे न? वहाँ भी कोई ऊँचा, कोई नीचा। संस्था कैसे तय करती है? संस्था भी तो तुम्हारे काम की गुणवत्ता देखती है। तो उसका ख्याल रखना, नहीं तो ये अपने आप में एक बहुत ही निचले तल पर चलता हुआ कुचक्र बन जाता है। उस कुचक्र का क्या अर्थ है? उस कुचक्र में ये होता है कि, “मैंने काम यूँही किया घटिया जैसा तो मुझे पैसे कम मिले। मुझे पैसे कम मिले तो मैंने कम पैसे में ही जीने की आदत डाल ली। कम पैसे में जीने की आदत डाल ली, मेरा जो पूरा मन है, मेरा जो पूरा जीवन स्तर है वो एक दम नीचे की ओर गिर गया। जब नीचे की ओर गिर गया तो मैंने और घटिया काम किया। जब मैंने और घटिया काम किया तो मुझे और कम पैसे मिले।” और वो इस तरह से चक्र चलता रहता है।

पैसे के पीछे मत भागो लेकिन आप पैसा नहीं कमा रहे हो इसी बात को अपना तमगा मत बना लो कि, “दुनिया तो बहुत ही कुटिल लोगों की है। यहाँ पर तो जो सच्चे और सीधे लोग होते हैं वो बेचारे कहाँ कमा पाते है पैसा”, तर्क समझिएगा। “दुनिया कुटिल लोगों की है, यहाँ जो सीधे-सरल लोग होते हैं वो पैसा कमा नहीं पाते।” अगला वाक्य; “हम भी पैसा नहीं कमा रहे हैं।” तो निष्कर्ष; “हम सीधे और सरल हैं।” ये तो गज़ब बात हो गई कि सीधे और सरल कहलाने के लिए तरीका ये निकाला कि कमाओ ही मत!

मैं कोई आक्षेप नहीं लगा रहा हूँ, मैं बिलकुल नहीं कह रहा हूँ कि तुम्हारी ये स्थिति है। पर ऐसा भी हो सकता है इसलिए सतर्क कर रहा हूँ। बहुत बार ऐसा हुआ है कि बड़े-बड़े सूरमा वीरगति को प्राप्त हो गए, पर इसका मतलब ये नहीं है कि जितने मारे जा रहे हैं सब सूरमा ही हैं। तो ये जो लॉजिकल

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org