पैसे को लेकर मन परेशान

धन का संबंध कर्म से है, यह एक तरह का संचित कर्म है। आपने जो काम करे उन सब कामों का मुद्रा की भाषा में अनुवाद कर दिया गया है। धन कमाने का एक ही उदेश्य होना चाहिए कि उससे बेचैनी मिट सके। अपने आप से ईमानदारी से पूछिए जरा कि क्या आपने पैसा इसीलिए इकट्ठा किया था कि वो आपके सभी चिंताओं का शमन कर देगा? इसलिए तो आपने पैसा जोड़ा ही नहीं था, पैसा तो आपने जमा किया था कि आप उससे इधर-उधर के तमाम काम कर सकें, तो ऐसे पैसे के जाने पर कितनी चिंता सम्यक है, इसका फैसला आप फिर स्वयं ही कर लें।

आपने ऐसी चीज़ इकट्ठा कर रखी हो जो अंततः आपके काम ही नहीं आने वाली हो और ऐसी चीज़ के जाने पर आप अफ़सोस करें तो यह तो दुगनी व्यर्थ बात हो गई। यह जो दुनिया है, जो छूट ही जानी है देर-सबेर इसके लिए पैसा जोड़ रहे हो? दुनिया में जो कुछ भी करिए यह ध्यान में रखकर करिए कि यह मैं कर ही क्यों रहा हूँ, क्या इससे मुझे वो मिलेगा जो मैं वाकई चाहता हूँ?

हम करे तो खूब जाते हैं लेकिन हम यह खुद से पूछते ही नहीं हैं कि यह जो करे जा रहा है उसे इससे चाहिए क्या? आप जो कुछ कर रहे होते हो उसका अपना एक गतिवेग होता है, उसका अपना एक नशा होता है। कर्ता एक नशे का ही नाम है और उस कर्ता के सभी कर्म उस नशे की अभिव्यक्ति मात्र है।

दौड़ना शायद व्यर्थ जा रहा है यह बात थम कर देखने से ही समझ आएगी लेकिन जब तक दौड़ रहे हो तब तक थम सकते नहीं तो यह बात फिर समझ नहीं आनी है तो तुम दौड़ते रह जाओगे जीवन भर जैसे सभी लोग दौड़ते रह जाते हैं। दौड़ते भी रहोगे और अगर उस दौड़ में जरा सा पिछड़ गए तो अफ़सोस भी होगा जैसे कि अभी आपको हो रहा है कि पिछले…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org