पैसा, नाम, ताकत — कमाएँ कि नहीं?

प्रश्नकर्ता: बाहर की दुनिया में सबसे ज़्यादा मूल्य ताकत को और नाम-पहचान को दिया जाता है तो ऐसे में सत्य के साधक का ताकत, पावर, और पहचान, प्रसिद्धि या ख्याति के प्रति क्या रवैया होना चाहिए?

आचार्य प्रशांत: आपको एक मंज़िल तक पहुँचना है और जिस मंज़िल तक आप पहुँचना चाहते हैं, उसी की राह में धीरे-धीरे आपको ये भी पता लगने लगता है कि वहाँ अकेले पहुँचा जा नहीं सकता। तो फिर आपको समझ में आता है कि जीवन का उद्देश्य होता है: अपनी मुक्ति और दूसरों का कल्याण, ये जीवन का उद्देश्य है। इसलिए हम लगातार चल रहे हैं और क्रिया कर रहे हैं, गति कर रहे हैं, इसीलिए हम साँस ले रहे हैं और जी रहे हैं।

हाँ, हम इस उद्देश्य से अगर अनभिज्ञ हों तो हम इधर-उधर के तमाम, छोटे-मोटे विविध लाभहीन उद्देश्य बना लेंगे, जिनसे न हमें कुछ मिलना है न दूसरों का कुछ भला है।

पर आपने बात करी है सत्य के साधक की। तो मैं समझता हूँ सत्य के साधक को तो ये छोटी-सी बात पता ही है कि वो जी किसलिए रहा है। वो जी रहा है — दोहराते हैं: अपनी मुक्ति के लिए और दूसरों के कल्याण के लिए। और ये दोनों बातें एकदम अन्तर्सम्बन्धित हैं: अपनी मुक्ति दूसरों के कल्याण बिना हो नहीं सकती और दूसरों का कुछ भला करोगे तो अपनी मुक्ति में सहायता मिलेगी।

अब ये आपको करना है। कैसे करोगे आप? काम छोटा नहीं है। ये करने के लिए आपको तमाम तरह के उपकरणों का, युक्तियों का, संसाधनों का इस्तेमाल करना पड़ेगा। है न? बल्कि काम इतना बड़ा है — चाहे अपनी मुक्ति की बात करो चाहे दूसरों की भलाई की — काम इतना बड़ा है कि जितने…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org