पैसा कितना और क्यों?

आचार्य प्रशांत: बेटा पैसे का वहाँ तक महत्व है, जहाँ तक शरीर का महत्व है।

मंजीत ने कहा, ‘पैसे का कितना महत्व है जीवन में?’ ठीक उतना ही जितना शरीर का है। अगर उससे ज़्यादा महत्व देने लग गए, तो गड़बड़ हो जाएगी। शरीर चलाने के लिए जितना चाहिए पैसे का उतना ही महत्व है। शरीर चलाने के लिए क्या चाहिए? खाना चाहिए, कुछ कपड़े चाहिए, और कभी-कभी, हमेशा भी नहीं, कभी-कभी सिर छुपाने के लिए कुछ जगह चाहिए। बस इतना ही महत्व है पैसे का। अगर पैसा तुम्हारे लिए कुछ और बन गया, तुम्हारी पहचान बनने लग गया, तुम्हारे लिए दूसरों को नीचा दिखाने का, अपने आप को ऊँचा दिखाने का साधन बनने लग गया, तो अब ये पैसा बीमारी है। सिर्फ उतना कमाओ जितने से काम चलता हो। सिर्फ उतना। और अगर उससे थोडा ज़्यादा आ जाए, तो खर्च कर दो, मज़ा कर लो। ये कोशिश भी मत करो कि कल के लिए थोड़ा बचा कर रख लूँ, अपने आप थोड़ा बच गया तो अलग बात है। पर इसलिए मत कमाओ कि बचाना है।

पैसे का इतना ही महत्व है कि शरीर चलता रहे। शरीर चलता रहे ताकि हम मौज कर सकें। तुम लोगों को देखो ना, वो इसलिए नहीं कमाते कि ज़िंदगी चले, वो इसलिए कमाते हैं क्योकि उन्हें कमाना है, क्योंकि कमाना ही लक्ष्य है, क्योंकि वो अपनी हैसियत को पैसे से नापते हैं। वो गिनते हैं कि मेरे पास अब कितना पैसा हो गया, और कहते हैं, ‘अब मेरी हैसियत उतनी ही बढ़ गयी जितना मेरा पैसा बढ़ गया, और अगर पैसा कम हो गया तो हैसियत भी’। ये बीमारी है अब। पूरी बीमारी है। इसलिए मुझे अजीब सा लगता है जब तुममे से कई लोग आकर कहते हो, ‘ये कर लेंगे, वो कर लेंगे तो फिर नौकरी कहाँ से लगेगी, बेरोज़गार रह जायेंगे, पैसा नहीं आएगा’। मैं…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org