पूर्व संध्या पर

मैं बड़ी लगन से

जतन कर रहा हूँ

खूब छुप-छुप के,

इसीलिए अब

कविता काफी कम लिखता हूँ ।

मैं पैने कर रहा हूँ

चुपके से

अपने हथियार

तुम्हारे ही बीच रह कर

रंग-बिरंगा वेश पहन कर

हूँ तुम में से एक

(अभी)

सतर्क हूँ मैं

खुद को भी नहीं जानने देता

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org