पूर्ण जीवन, पूर्ण मृत्यु!

पूर्ण जीवन, पूर्ण मृत्यु!

द वायलेंट एंड स्ट्रांग डू नॉट डाई देयर नेचुरल डेथ।

आइ विल मेक दिस द बेसिस ऑफ़ माई टीचिंग।

लाओ त्सु

आचार्य प्रशांत : तरीके हैं लाओत्सु के। द वायलेंट वन कैननॉट हैव अ नैचुरल डेथ।

वायलेंस , हिंसा का अर्थ है — चाहना। जहाँ काम है, वहाँ क्रोध है। जब अर्जुन पूछता है कि ये सब भ्रम आ ही कहाँ से रहे हैं? तो कृष्ण कहते हैं, “कुछ नहीं है, काम है, जिसने ज्ञान को ढक रखा है”। और जहाँ काम है, वहाँ क्रोध आएगा ही आएगा। जहाँ इच्छा है, वहाँ क्रोध का आना पक्का है। इच्छा के साथ हिंसा जुड़ी हुई रहेगी ही रहेगी। इच्छा हो, हिंसा न हो, ये हो ही नहीं सकता।

*द वायलेंट वन डज़ नॉट डाई अ नैचुरल डेथ*।

नैचुरल डेथ का अर्थ होता है, पूर्ण मृत्यु। कोई अवशेष, कोई रेसिड्यू नहीं बचा। जो बात थी, वो पूरी की पूरी समाप्त हो गयी। उसको पूर्ण समापन दे दिया। आगे के लिए अब कुछ नहीं चाहिए। कुछआगे के लिये शेष नहीं है उसमें। जहाँ अभी वासनाएँ हैं, वहाँ पूर्ण मृत्यु कैसे मिलेगी? आप कह रहे होंगे, “पूर्ण मृत्यु न मिले तो न मिले, चाहिये क्या?”

पूर्ण मृत्यु इसीलिए आवश्यक है, क्योंकि बिना पूर्ण मृत्यु के, पूर्ण जीवन भी नहीं मिलता। अहंकार आपको न पूरी तरह जीने देता है, न पूरी तरह मरने देता है। वासना, न जीने देती है, न मरने देती है। न जीने देगी, न मरने देगी। जीने इसीलिए नहीं देगी, क्योंकि तड़प रहे हो, कि किसी तरह से और कुछ मिल जाए। मरने इसीलिए नहीं देगी, क्योंकि मर गए तो कहाँ मिलेगा? न जिया जा रहा है, न मरा जा रहा है। सहज मृत्यु, बड़ी नियामत है। सहज मृत्यु — नैचुरल डेथ । सहज मृत्यु का अर्थ हुआ कि पिछला जो कुछ था, उसे विसर्जित कर दिया, हर क्षण जीवन नया है। पुराने को ही आगे नहीं खींच रहे हैं। प्रेम से आए थे, और प्रेम से चले गए। मन में कोई अतृप्त आकांक्षा नहीं बैठी है कि चिपके हुए हैं।

देखो जहाँ आनंद होता है, वहाँ विदा कष्टपूर्ण नहीं होती। वहाँ विदा भी उत्सव जैसी होती है। अगर विदाई में कष्ट हो रहा है, तो एक बात साफ समझ लेना कि कष्ट विदाई में नहीं है, कष्ट उन सारे लम्हों में संचित है जो तुमने पूरे नहीं जिए। हमारा कोई प्रियजन मरता है, हम खूब रोते हैं। तुम्हें क्या लगता है, तुम मौत के कारण रो रहे हो? नहीं। हम उन क्षणों के लिए रो रहे होते हैं, जो जिए जा सकते थे, पर हमने जिए नहीं उस व्यक्ति के साथ। अब वो चला गया, अब कोई अवसर नहीं मिलेगा। प्याला सामने रखा रह गया, हमने पिया नहीं। तो प्याला अब छिना जाता है। हम इस कारण रोते हैं।

सहज मृत्यु का अर्थ ये है, कि जो रहा पूरा रहा। अब विदाई भी उल्लास है। पूरा बोध है रिश्ते में, अच्छे से जानते हैं, कि मिलन क्या है…

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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