पुरानी आदतें कैसे सुधारें?

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, ये जो आदत है हमारी, बार-बार पीछे की और ले जाती है। थोड़ी देर के लिए गए, अच्छा लगा, और फिर वापस। वो कैसे छूटे?

आचार्य प्रशांत: न छूटे! पड़ी रहे, पड़ी रहे।

आप अपने स्वजन के साथ हैं, आप अपने प्रेमी के साथ हैं। एक कमरे में हैं। और उस कमरे में पड़ी हुई है, कहीं कोने कतरे कुछ गंदगी। कितना ज़रूरी है अब आप के लिए कि वो गंदगी साफ़ हो, तभी आप प्रेम में, आनंद में रह पाएँगे? कितना ज़रूरी है?

प्र: ज़रूरी है।

फिर पूछ रहा हूँ। आप प्रेमी के साथ हैं! क्या अब आवश्यक है आपके लिए? उसके साथ होना, या कमरे में इधर उधर पड़ी गंदगी?

श्रोतागण: उसके साथ होना!

आचार्य जी: समझ रहे हैं बात को? ये बड़ी आदिम गंदगियाँ हैं। बड़ी प्राचीन। पुरानी आदतें, ढर्रे, संस्कार, मन के तमाम तौर-तरीके। ये देह में बैठे हुए हैं, ये हो सकता है ना जाएँ जल्दी। कुछ चले भी जाते हैं, कुछ जाने में पूरा जीवन लगा देते हैं, कुछ जीवन पर्यन्त नहीं जाते हैं। आप इंतज़ार थोड़े ही करते बैठे रहोगे कि पहले मन का पूरा रेचन हो जाए, उसके बाद हम शांत होंगे? मन जैसा है, चलता रहे अपनी चाल। तमाम आदतें भरी हैं उसमें भरी रहें, गंदगियाँ भरी हैं, भरी रहें, राग-द्वेष, कपट-मोह भरे हैं, भरे रहे। माया का उस पर कब्ज़ा है, रहा आये; हम मस्त रहेंगे।

के प्रेमी को रोक के रखोगे? आप जिस व्यक्ति को प्रेम कर रहे हैं, वो अभी किसी दूसरे कार्य में व्यस्त हैं, कृपया इंतज़ार करें। होल्ड पर रखोगे? कि पहले सफ़ाई-वफ़ाई कर लें, फिर जियेंगे…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org