पुराणों की कथा तो कपोल कल्पित होती हैं, फिर इनका क्या महत्त्व है?

प्रश्नकर्ता: दुर्गासप्तशती के प्रथम चरित्र में दो असुर मधु और कैटभ के बारे में बात हुई है, क्या वो एक तरीके से वृत्ति के ही रूप हैं?

आचार्य प्रशांत: आप अगर निद्राग्रस्त हो, कौन सी निद्रा? चेतना की निद्रा, तो आपके शरीर का मैल ही असुर है। जब आप माया के आधीन होकर सो जाते हो तो आपका शरीर ही असुर है। शरीर माने शारीरिक वृत्तियाँ, वही असुर हैं।

यह बड़ी उपलब्धि का काम है। बड़ी विशेषज्ञता का काम है कि जो अस्तित्वगत सिद्धांत हैं, उनको किस तरीके से कथा के माध्यम तक जनसामान्य तक लाया जाए। तो आप पुराणों में जितनी कथाएँ पाते हो, वह वास्तव में यही प्रयत्न कर रही हैं। जनसामान्य तक तुम अगर बिल्कुल श्रुति के श्लोक लाओगे तो वे समझ नहीं पाएँगे, तो श्रुति के ही सिद्धांतों को कथाओं के माध्यम से लोगों तक लाया जाता है। अब लेकिन फिर यह ज़रूरी होता है कि उन कथाओं का उपयोग सिद्धांतों तक पहुँचने के लिए किया जाए, उन कथाओं को ही सत्य न मान लिया जाए।

कथा इसलिए है कि तुम सिद्धांत तक पहुँचो, सिद्धांत इसलिए है कि तुम सत्य तक पहुँचो। तुमने अगर उलटी गंगा बहा दी और कथा को ही सत्य मान लिया तो फँस जाओगे। भारत में दुर्भाग्य से यह हुआ है कि कथा को ही ऐतिहासिक मान लिया गया या सत्य मान लिया गया, कथा का जो सम्यक उपयोग है, वह नहीं किया गया।

एक विशेषज्ञ चाहिए सिद्धांत को कथा का रूप देने के लिए, कथाबद्ध करने के लिए। और फिर एक दूसरा विशेषज्ञ भी चाहिए उस कथा के मर्म में जो सिद्धांत बैठा है, उसको उद्घाटित करने के लिए। एक चाहिए कोडर और एक चाहिए डिकोडर और दोनों में बराबर की विशेषज्ञता होनी चाहिए। जिन्होंने कोडिंग करी थी, जिन्होंने उच्चतम सूत्रों को कथाबद्ध करा था, उन्होंने…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org