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पुनर्जन्म किसका होता है, और कहाँ?

प्रश्नकर्ता: प्रणाम आचार्य जी, आज हमने शिविर में रीडिंग करते हुए पुनर्जन्म के बारे में पढ़ा। हमने आपका एक वीडियो भी देखा जिसमें आपने बताया है कि आत्मा का कोई जन्म या मरण नहीं होता, प्रकृति का जन्म-मरण बार-बार होता रहता है और मनुष्य एक ही बार जीता है और फिर मर जाता है। फिर हमने श्रीमद्भागवत गीता के कुछ श्लोकों को पढ़ा। अध्याय छह के इकतालिसवें श्लोक में श्रीकृष्ण जी कहते हैं —

प्राप्य पुण्यकृतां लोकानुषित्वा शाश्वतीः समाः।
शुचीनां श्रीमतां गेहे योगभ्रष्टोऽभिजायते।।६.४१।।

शब्दार्थ: योगभ्रष्ट पुरुष पुण्यवानों के लोकों को प्राप्त होकर उनमें बहुत वर्षों तक निवास करके फिर शुद्ध आचरण वाले श्रीमान पुरुषों के घर में जन्म लेता है।

आचार्य जी इस श्लोक में दो जन्मों के बीच एक निरंतरता की बात की गई है, वो भी व्यक्ति विशेष के लिए। कृपया इस सूत्र का अर्थ समझाने की कृपा करें।

आचार्य प्रशांत: हम दो होते हैं। एक वो जो निश्चित रूप से पत्थर-पानी है, माँस-लकड़ी है, रक्त है, वायु है। एक वो हैं हम, पंचभूत का पुतला। और कुछ और हैं हम। वो जो दूसरा है वो क्या है? वो दूसरा जो है वो भौतिक तो नहीं है क्योंकि सब पंचभूतों को तो हमने एक तरफ़ रख दिया। हमने कहा दो हैं हम जिसमें से जो कुछ भी भौतिक है उसको तो रखो एक तरफ़, हड्डी-माँस-मस्तिष्क सब उसी में आ गए।

और एक दूसरी भी कुछ पहचान है हमारी जो ऐसी दुनिया की बात करता है जो भौतिक है ही नहीं।

हम ही हैं फिर जो कभी तो बात करते हैं कि, "मुझे पैसा चाहिए" और कभी कहते हैं कि, "मुझे प्यार चाहिए"। जब कहते हैं कि पैसा चाहिए तो कौन हैं हम? वो जिसका संबंध पैसे से है क्योंकि पैसे का संबंध तो भौतिक चीज़ों से…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant
आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

Written by आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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