पाया है कुछ पाया है
सभी श्रोता(गाते हुए):
पाया है किछु पाया है, मेरे सतगुरु अलख लगाया है
कहूं बैर पड़ा कहूं बेली है, कहूं मजनूं है कहूं लेली है, कहूं आप गुरु कहूं चेली है, आप आपका का पंथ बताया है।
कहूं महजत का करतारा है, कहूं बणिया ठाकुरद्वारा है, कहूं बैरागी जयधारा है, कहूं सेखन बनि बनि आया है।
कहूं तुरक मुसल्ला पढ़ते हो, कहूं भगत हिन्दू जब करते हो, कहूं घोर घुंडे में पड़ते हो, कहूं घर-घर लाड लड़ाया है।
बुल्ले शाह का मैं बेमुहताज़ होइआ, महाराज मिल्या मेरा काज होइआ, दर्शन पिया का मुझे इलाज़ होइआ,आप आप में आप समाया है।
आचार्य: यह अच्छा नाम है ‘बेमुहताज़’। जितने सारे हमने बरहम के नाम लिखे हैं, उसमें अब यह भी जोड़ लो, ‘बेमुहताज़’। कौन सा श्लोक है?
प्र१: छठे अध्याय का पहला।
आचार्य: “अनाश्रित कर्मफलं कार्यं कर्म करोति यः”। तो वही अनाश्रित है, वही बेमुहताज़ है। ठीक है? तो बेपरवाह तो था ही, अब बेमुहताज़ भी है, यह उसका एक लक्षण है, क्या? कि वो बेमुहताज है। किसी पर निर्भर नहीं करता और जब तक तुम मनुष्य हो, तुम क्या हो?
प्र२: बेमुह्ताज।
आचार्य: और जो बेमुहताज हो गया वो साधारण मनुष्य नहीं रहा। जो जितना बेमुहताज होता जायेगा, वो उतना उसके करीब पहुँचता जायेगा। तुम जितनी निर्भरता कम करते हो तुम किसके करीब पहुँचते जाते हो? उसके! और जब बिल्कुल वही हो जाते हो तो?
“तत त्वम असि”, तुम वही हो।